खेत की तुम माटी हो

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anil kumar
सोंधी-सोंधी-सी ख़ुशबू लेकर जब तुम आती हो,
मुझको तो लगता है अपने खेत की तुम माटी हो।
हरे-भरे पत्तों के जैसा है परिधान तुम्हारी,
बागों की नाज़ुक कलियों -सी है मुस्कान तुम्हारी,
पंखुड़ियों से अधर खिले तुम हर एक को भाती हो।
मुझको तो लगता है अपने खेत की तुम माटी हो।
सोंधी-सोंधी-सी ख़ुशबू…………..॥
चना-मटर के जैसे तेरी नित बजती है पायल,
रुन-झुन,रुन-झुन की धुन मन को कर देती है घायल,
कोयल-सी जब कूक में अपनी गीत ‘मधुर’ गाती हो,
मुझको तो लगता है अपने खेत की तुम माटी हो।
सोंधी-सोंधी-सी ख़ुशबू…………..॥
धरती-सी पावन हो फसलों-सी तुम मनभावन हो,
ऋतु बसन्त-सी मादक हो पतझड़-सी तुम दावन हो,
कभी अम्बु बनकर तुम सारी प्यास मिटा जाती हो,
मुझको तो लगता है अपने खेत की तुम माटी हो।
सोंधी-सोंधी-सी ख़ुशबू……………॥
छेड़छाड़ करता जब मानव प्रकृति स्वरूपा तुझसे,
स्वाभाविक है कोप तुम्हारा जो करती तुम मुझपे,
बनकर कभी अब्र जैसी तुम मुझको तड़पाती हो,
मुझको तो लगता है अपने खेत की तुम माटी हो।
सोंधी-सोंधी-सी खुशबू…………..॥
कहते मुझे अन्न दाता सब पर मेरी तो तुम हो,
तुम्हीं शान्ति-सुख हो घर की और धन-दौलत भी तुम हो,
बनकर तुम्हीं रात में जुगनू जलती बुझ जाती हो।
मुझको तो लगता है अपने खेत की तुम माटी हो।
सोंधी-सोंधी-सी खुशबू……………॥
                                                                           #अनिल कुमार सिंह ‘मधुर’
परिचय : अनिल कुमार ‘मधुर’ उत्तरप्रदेश के टक्करगंज
(प्रतापगढ़) में रहते हैं। १९६२ में आपका जन्म हुआ तथा एम.ए. 
(हिन्दी) की शिक्षा प्राप्त की है। आप उ.प्र.राज्य कर्मचारी कल्याण निगम में प्रबंधक के तौर पर कार्यरत हैं। ३० वर्ष पूर्व ‘मधुर गीतांजलि’ नाम से  पुस्तक प्रकाशित हुई है।आपको अम्मा साहब ट्र्स्ट (प्रतापगढ़),भारतीय जीवन बीमा निगम,
शैल साहित्यिक संस्थान और उत्तर मध्य रेलवे इलाहाबाद की जिंगल लेखन प्रतियोगिता में द्वितीय पुरस्कार सहित अन्य सम्मान मिले हैं।आकाशवाणी के इलाहाबाद और नज़ीबाबाद केन्द्र से आपकी रचनाओं का प्रसारण होता है। विभिन्न मंचों से भी रचना पाठ करते हैं
 

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