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मैंने बदल दी है अपनी मंज़िल की अब राह आहिस्ता-आहिस्ता
बस एक उम्मीद जिंदा मिले फैलाकर बाह आहिस्ता-आहिस्ता
ज़रूरी नहीं कि पूरा हो हर एक ख़्वाब मेरा खुली आँखों से देखा
बस किसी शायर भी मिले हाथ खोलकर वाह आहिस्ता-आहिस्ता
चलते चलते थक गए है कदम मिरे अब किससे क्या क्या कहूँ
इंतज़ार है किसी का जो दिल से करे परवाह आहिस्ता-आहिस्ता
#अमोघ अग्रवाल’इंतज़ार’, इंदौर
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