उत्तर प्रदेश के एक गाँव में बलात्कार की घटना घटित होने की ख़बर फैलते ही सोशल मीडिया पर बलात्कार से संबंधित लेखों, कहानियों एवं कविताओं की बाढ़-सी आ गई। प्रिया दीक्षित एक स्वघोषित लेखिका थी। जब किसी भी राष्ट्रीय समाचार पत्र अथवा पत्रिका में उसकी रचना प्रकाशित नहीं हो सकी तो उसने फ़ेसबुक पर लिखना शुरु कर दिया। प्रिया दीक्षित ने सोचा कि अभी अच्छा समय है जब मैं बलात्कार पर लिखकर लोगों की नज़रों में आ सकती हूँ।
‘ना आना भारत देश मेरी लाडो’ शीर्षक से प्रिया दीक्षित ने एक कहानी लिख डाली और अपने एक परिचित जो कि एक फ़ेसबुक पेज के एडमिन थे उनको प्रेषित कर दिया। कहानी में अनेक त्रुटियाँ थीं परंतु एडमिन महोदय को साहित्य की बारीकियों का ज्ञान नहीं था; इसलिए कहानी में व्याप्त त्रुटियाँ उनकी समझ से परे थीं। कहानी पढ़ने के तुरंत बाद एडमिन महोदय ने अपने फ़ेसबुक पेज पर उस कहानी को पोस्ट कर दिया। अगले दिन प्रिया ने देखा कि फ़ेसबुक पेज पर पोस्ट की गई उसकी कहानी पर पच्चीस लोगों ने अपनी प्रतिक्रियाएँ प्रदर्शित की थीं। प्रिया दीक्षित को अपनी किसी भी कहानी पर इतनी अधिक प्रतिक्रियाएँ पहली बार प्राप्त हुई थीं। इस वज़ह से प्रिया बहुत खुश थी। उसने एडमिन महोदय को फोन कर कहानी पोस्ट करने के लिए आभार जताया एवं धन्यवाद दिया।
रात में प्रिया ने अपने पति को उनकी पसंद का खाना बनाकर खिलाया और अपनी खुशी का राज़ भी बताया। कुछ देर बाद प्रिया दीक्षित अपने पति को आगोश में लेकर बिस्तर पर लेट गई।
उधर बलात्कार पीड़िता ने अस्पताल में तड़पते हुए अपना दम तोड़ दिया।
आलोक कौशिक
बेगूसराय(बिहार)