भारतीय उद्योगों का भविष्य कागजों में अत्यंत सुनहरा और धरातल पर धराशाई है। जिसका मूल कारण भ्रष्टाचार और ईर्ष्या है।
भ्रष्टाचार जो उद्योग को अंकुरित होने से पहले ही मसल देता है। जो राष्ट्र का परम शत्रु है। जिसके कारण आज भी हम वीटो पावर से वंचित हैं। इसी प्रकार ईर्ष्या भाई की भाई से, ईर्ष्या अपने अस्तित्व के बचाव से, ईर्ष्या समाज में सामाजिक आर्थिक उन्नति एवं विकास की चर्चित है। जिसमें भारत, भारतीय एवं भारतीयता दम तोड़ रही है। जिससे बेरोजगारी चरम सीमा पर पहुंच गई है।
विचारणीय है कि भारत का युवा वर्ग विश्व का सशक्त स्तम्भ है और विश्व में किसी भी स्पर्धा में सर्वोपरि है। फिर उद्योगों में पिछड़ापन क्यों है? जो गंभीर प्रश्न चिन्ह है।
मैंने देखा है कि उच्च शिक्षा प्राप्त युवा उद्योगिक इकाईयों के लिए ऋण लेकर राष्ट्र की सेवा हेतु आगे आए और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए।
सब्सिडी की छीना-झपटी किसे मालूम नहीं है। सरकारी अधिकारी/कर्मचारी उस सब्सिडी से अपना हिस्सा तब तक मांगते हैं, जब तक उद्यमी भिखारी नहीं बन जाता। उस पर ऋण देने में बंदरबांट भी उद्यमियों और उद्योगों को नष्ट करने में अग्रिम भूमिका निभाते हैं।
एक कारण अशिक्षित शिक्षकों द्वारा प्रक्षिक्षण देना भी है। उद्योगों की सफलता हेतु प्रशिक्षण एक महत्वपूर्ण कड़ी है। जिसके आधार पर उद्यमी और उद्योग का भविष्य टिका होता है।
अतः प्रधानमंत्री जी द्वारा दिए गए 'लोकल फार वोकल' मंत्र की सफलता के लिए भ्रष्ट व्यवस्था और भ्रष्टाचार पर लगाम, प्रशिक्षण कार्यक्रम में श्रेष्ठता और निष्ठा, प्रत्येक कर्मचारी/अधिकारी की कार्य प्रणाली एवं कार्य क्षमता की पारदर्शिता को अनिवार्य किया जाना चाहिए।
फिर उद्यमी और उद्योग चाहे शहर से गांव की ओर जाएं या गांवों से शहरों की ओर आएंं, मेरा दावा है कि वह फूलेंगे और फलेंगे अवश्य।