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मदमस्त हाथी अब डोल रहा,
अपनी भाषा में कुछ बोल रहा।
दब गई मंशाएं हर जगह जब,
वो हाथ-पैर अपने खोल रहा।
मदमस्त हाथी कुछ बोल रहा…..।
दिखी न जब कहीं
कुछ आस उसको,
वो वर्षों से सब देख रहा
उठ खड़ा हुआ देखो
हुंकार जोर की भर रहा
लगा विध्वंस करने तब,
जब न उसको कोई पथ रहा।
मदमस्त हाथी अब डोल रहा….।
बुरा कहो,या भला कहो,
किसान भी अब कुछ बोल रहा…
लाख दबा दो मंशाएं उसकी,
हरकत वो सबकी देख रहा।
मदमस्त हाथी कुछ….।
बेड़ी पहना दो पैरों में,
या जंजीर गले में डल दो
जख्मी हो पड़ा रहेगा।
पर वो औकात सबकी देख रहा।
मदमस्त हाथी अब….।
है कोई इस जग में,
जो जग के पालनहार को देख रहा..
छिड़क रहे नमक सभी
जख्मों पर उसके।
मरहम आज कौन घोल रहा।
मदमस्त हाथी अब….।
सुन लो मामा,शिव भंडारी
इसकी मेहनत का अब
न कोई मोल रहा।
तोड़ दिए सारे बंधन तुमने,
दिल में तुम्हारा अब न मान रहा।
मदमस्त हाथी अब..।
किसान भी कुछ बोल रहा ….।
#सुनील विश्वकर्मा
परिचय : सुनील विश्वकर्मा मध्यप्रदेश के छोटे गांव महुआखेड़ा (जिला गुना) के निवासी हैं। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा अपने गांव एवं बाद की इंदौर से (स्नातकोत्तर)प्राप्त की है। आप लिखने का शौक रखते हैं।वर्तमान में इंदौर में प्राइवेट नौकरी में कार्यरत हैं।
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Fri Jun 9 , 2017
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