समस्या बनाम सियासत चिंताजनक!

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यह बात पूरी तरह से सत्य है बढ़ती हुई जनसंख्या किसी भी देश अथवा परिवार के लिए शुभ संकेत
नहीं है। यदि उच्च शिक्षा तथा उच्च चिकित्सा का बात करते हैं तो बढ़ती हुई जनसंख्या बहुत बड़ा संकट
सामने खड़ा कर देती है। किसी भी परिवार को सम्पन्न और सबल बनाने में शिक्षा का बहुत बड़ा योगदान होता
है। लेकिन यह तभी संभव हो पाता है जब किसी भी परिवार की जनसंख्या नियन्त्रित हो जोकि संसाधनों को
ध्यान में रखकर तैयार की गई हो। ऐसा कदापि नहीं हो सकता कि किसी भी परिवार में बीस बालक हों और
सभी बालक उच्च शिक्षा ग्रहण पाएं। इसके लिए सबसे पहले जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करना होगा। जब
तक जनसंख्या वृद्धि में नियंत्रण नहीं होगा कोई भी प्रयोग सफल नहीं हो सकता। अच्छा भविष्य एवं खुशहाल
जीवन यदि बनाना है तो निश्चित ही जनसंख्या विस्फोट पर लगाम लगानी पड़ेगी।
संयुक्त राज्य अमेरिका की जनगणना ब्यूरो द्वारा प्रकाशित एक पत्र के अनुसार विश्व की जनसंख्या
24 फ़रवरी 2006 को 6.3अरब 650,00,00,000 के आंकड़े से भी पार हो चुकी है। 1987 में विश्व जनसंख्या
के 5 अरब तक पहुँचने के लगभग 12 साल बाद और 1993 में विश्व जनसंख्या के 5.5 अरब तक पहुँने के 6
साल बाद हुआ। 1700 वीं शताब्दी के बाद जैसे जैसे औद्योगिक क्रांति तेज़ गति से बढ़ती गयी वैसे वैसे
जनसंख्या वृद्धि में भी काफ़ी बढ़त देखने को मिली पिछले 50 वर्षों में जनसंख्या वृद्धि की दर और भी
ज़्यादा तेज़ हुई इसकी मुख्य वजह है जागरूकता का आभाव। सन् 2007 में संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या प्रभाग ने
अनुमान लगाया कि वर्ष 2055 में दुनिया की आबादी 10 अरब के आँकड़े को पार कर जाएगी जोकि संपूर्ण
विश्व के लिए बहुत ही घातक होगा। यह एक ऐसा भय है जिससे कि निकट भविष्य में दुनिया की आबादी में
वृद्धि शिखर तक पहुंचेगी और उसके बाद आर्थिक कारणों, स्वास्थ्य चिंताओं, भूमि के अंधाधुंध प्रयोग और
उसकी कमी और पर्यावरणीय संकटों के कारण पूरे संसार में बड़ी उथल-पुथल भरी तबाही फैल चुकी होगी।
इसलिए जनसंख्या वृद्धि को कम करने की जरूरत है। इस पर अंकुश लगाने का मात्र एक उपाय है वह
यह कि जन्म दर को कम करके जनसंख्या वृद्धि में कटौती करने को ही आम तौर पर जनसँख्या नियंत्रण
माना जाता है। प्राचीन ग्रीस दस्तावेजों में मिले उत्तर जीविता के रिकॉर्ड जनसँख्या नियंत्रण के अभ्यास एवं
प्रयोग के सबसे पहले उदाहरण हैं। इसमें शामिल है उपनिवेशन आन्दोलन, जिसमे भूमध्य और काला सागर के
इर्द-गिर्द यूनानी चौकियों का निर्माण किया गया था ताकि अलग-अलग राज्यों की अधिक जनसँख्या को बसने
के लिए पर्याप्त जगह मुहैया कराई जा सके। कुछ यूनानी नगर राज्यों में जनसँख्या कम करने के लिए शिशु
हत्या और गर्भपात को प्रोत्साहन दिया गया था। हत्या और गर्भपात पूरी तरह कानून का उलंग्घन करता जोकि

पूरी तरह गलत है किसी की भी हत्या करना अपराध है। परन्तु इसका दूसरा उपाय है कि व्यक्ति को जागरूक
करना तथा उसको समाज के प्रति जिम्मेदार बनाना। ऐसा करना सबसे अच्छा विकल्प है। योजनाओं के
माध्यम से उसको एक विकल्प प्रदान करना जब व्यक्ति को किसी भी प्रकार का विकल्प दिया जाएगा तो वह
निश्चित ही उस विकल्प पर विचार करेगा और स्वेच्छा से जन्संख्या वृद्धि पर स्वयं ही अंकुश लगा देगा।
अगर प्रजनन नियंत्रण करने को व्यक्ति के व्यक्तिगत निर्णय के रूप में और जनसंख्या नियंत्रण को सरकारी
या राज्य स्तर की जनसंख्या वृद्धि की विनियमन नीति के रूप में देखा जाए तो प्रजनन नियंत्रण की संभावना
तब हो सकती है जब कोई व्यक्ति या दम्पति या परिवार अपने बच्चे पैदा करने के समय को घटाने या उसे
नियंत्रित करने के लिए कोई कदम उठाए। अन्सले कोले द्वारा दिए गए संरूपण में प्रजनन में लगातार कमी
करने के लिए तीन पूर्व प्रतिबंध दिए गए हैं (1) प्रजनन के मान्य तत्व के रूप में परिकलित चुनाव को
स्वीकृति (भाग्य या अवसर या दैवीय इच्छा की तुलना में) (2) कम किए गए प्रजनन से ज्ञात लाभ (3)
नियंत्रण के प्रभावी तरीकों का ज्ञान और उनका प्रयोग करने का कुशल अभ्यास।
प्राकृतिक प्रजनन पर विश्वास करने वाले व्यक्तियों के विपरीत वह समाज जो कि प्रजनन को सीमित
करने की इच्छा रखते हैं और ऐसा करने के लिए उनके पास संसाधन भी उपलब्ध हैं। वह इन संसाधनों का
प्रयोग बच्चों के जन्म में विलम्ब बच्चों के जन्म के बीच अंतर रखने या उनके जन्म को रोकने के लिए कर
सकते हैं। संभोग (या शादी) में देरी या गर्भनिरोध करने के प्राकृतिक या कृत्रिम तरीके को अपनाना ज्यादा
मामलों में व्यक्तिगत या पारिवारिक निर्णय होता है इसका राज्य नीति या सामाजिक तौर पर होने वाले
अनुमोदनों से कोई सरोकार नहीं होता है। दूसरी ओर वह व्यक्ति जो प्रजनन के मामले में खुद पर नियंत्रण रख
सकते हैं। सामाजिक स्तर पर प्रजनन में गिरावट होना महिलाओं की बढती हुई जागरुकता एवं शिक्षा का एक
अनिवार्य परिणाम है। हालाँकि मध्यम से उच्च स्तर तक के प्रजनन नियंत्रण में प्रजनन दर को कम करना
शामिल हो। यहां तक कि ऐसे अलग-अलग व्यक्तियों की तुलना न कि किसी समाज की जोकि प्रजनन नियंत्रण
को अच्छी खासी तरह अपना चुके हैं तो बराबर प्रजनन नियंत्रण योग्यता रखने वाले समाज भी काफी अलग
अलग प्रजनन स्तर में भागीदारी ले सकते हैं। जो कि इस बात से जुड़ा होता है कि छोटे या बड़े परिवार के
लिए या बच्चों की संख्या के लिए व्यक्तिगत और सांस्कृतिक पसंद क्या है। साथ ही व्यवस्थओं एवं रहन
सहन की रूप रेखा पर विचार एवं प्रचार प्रसार हो। जिससे की छोटे परिवार की आर्थिक स्थिति और बड़े
परिवार की आर्थिक तंगी को पटल पर रखा जाए। जिससे की साफ एवं स्पष्ट संदेश स्वयं ही ऐसी मानसिकता
हो मिल जाएगा जोकि जनसंख्या विस्फोट की जिम्मेदार हैं।
प्रजनन क्षमता पर नियंत्रण के विपरीत जो मुख्य रूप से एक व्यक्तिगत स्तर का निर्णय है सरकार
जनसँख्या नियंत्रण करने के कई प्रयास कर सकती है जैसे गर्भनिरोधक साधनों तक लोगों की पहुँच बढ़ाकर या
अन्य जनसंख्या नीतियों और कार्यक्रमों के द्वारा जैसा की ऊपर परिभाषित है सरकार या सामाजिक स्तर पर
जनसंख्या नियंत्रण को लागू करने में प्रजनन नियंत्रण शामिल नहीं है क्योंकि एक राज्य समाज की जनसंख्या

को तब नियंत्रित कर सकता है जब समाज में प्रजनन नियंत्रण का प्रयोग किया जाता हो। जनसंख्या नियंत्रण
के एक पहलू के रूप में आबादी बढ़ाने वाली नीतियों को अंगीकृत करना भी ज़रूरी है। हाल के सालों में इस
तरह की नीतियों फ्रांस और स्वीडन में अपनाई गयी। जनसंख्या वृद्धि नियंत्रण पर कई बार सरकार ने गर्भपात
और जन्म नियंत्रण के आधुनिक साधनों के प्रयोग को भी नियंत्रित करने की कोशिश की है। पारिस्थिति में कई
बार जनसंख्या नियंत्रण पूरी तरह सिर्फ परभक्षण, बीमारी, परजीवी और पर्यावरण संबंधी कारकों द्वारा किया
जाता है। एक निरंतर वातावरण में जनसंख्या नियंत्रण भोजन पानी और सुरक्षा की उपलब्धता द्वारा ही
नियंत्रित होता है। एक निश्चित क्षेत्र अधिकतम कुल कितनी प्रजातियों या कुल कितने जीवित सदस्यों को
सहारा दे सकता है। ऐसे प्रयोग को उस जगह की धारण क्षमता कहते हैं।
कई बार इसमें पौधों और पशुओं पर मानव प्रभाव को भी इसमें शामिल किया जाता है। किसी विशेष
ऋतू में भोजन और आश्रय की ज्यादा उपलब्धता वाले क्षेत्र की और पशुओं का पलायन जनसंख्या नियंत्रण के
एक प्राकृतिक तरीके के रूप में देखा जा सकता है।
भारत एक और ऐसा उदाहरण है जहाँ सरकार ने देश की आबादी कम करने के लिए कई उपाय किए हैं।
तेज़ी से बढती जनसँख्या आर्थिक वृद्धि और जीवन स्तर पर सीधा प्रभाव डाल रही है। इस बात की चिंता के
अंतर्गत 1950 के दशक के आखिर और 1960 के दशक के शुरू में भारत ने एक आधिकारिक परिवार नियोजन
कार्यक्रम लागू किया भारत ऐसी चिंता करने वाला विश्व में पहला देश था। लेकिन सारी नीति कुछ समय के
बाद कागज के पन्नों की शोभा मात्र बढ़ाती रह गई और देश में जनसंख्या विस्फोट हो गया। यह जनसंख्या
विस्फोट देश और समाज के लिए बहुत बड़ी बीमारी है जिसे सभी देश वासियों को समय रहते समझ लेना
चाहिए। खुशहाल जीवन की ओर एक कदम बढ़ाना सबकी जिम्मेदारी है।

वरिष्ठ पत्रकार एवं राष्ट्र चिंतक।
(सज्जाद हैदर)

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आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।