मेहनत लगन और निष्ठा का
फल क्या मुझे मिलेगा।
बनाया है जो आशियाना
क्या उसमें रहने को मिलेगा।
या ये भी एक यादगार और
स्मारक बनकर खड़ा रहेगा।
जो मोहब्बत की कहानी को
अपने अंदाज में कहेगा।।
महफ़िल में रंग हम जमाते थे।
जब वो हमारे साथ होते थे।
हम तो आज भी यहाँ पर है।
लेकिन उनका तो पता नहीं।
मोहब्बत को हमने मोहब्बत से
अपनी आँखो में ही सदा देखा।
और उनकी आँखो में भी कभी
मोहब्बत के लिए नफरत न देखी।।
इश्क में जीने वाले लोग
इश्क में ही मरते है।
इश्क कामयाब होता है
तो खुशी मिलती है।
न कामयाब होती है तो
जिंदा होकर मृत जैसे है।
इसलिए इश्क करना
आसान नहीं होता है।।
बनावटी महफिलो के लोग
आदि से हो चुकी हैं।
गीत संगीत नृत्य मोहब्बत से
उनका दूर तक संबंध नहीं है।
फिर भी महफ़िल में जाकर
नीयत का प्रदर्शन करते है।
और मोहब्बत को ऐसे लोग
आज बदनाम कर रहे है।।
मोहब्बत एक बड़ी इबादत है
जो हर किसी को नहीं मिलती।
खुश नसीब तो वो है जिन्हें
ये जन्नत आज मिल रही है।।
जय जिनेंद्र देव
संजय जैन “बीना” मुंबई