जी चाहता है

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पेश ए नजर रात के नाम एक ख़त लिखने को जी चाहता है,
ख्वाब के दरिये में साहिल पे उतरने को जी चाहता है ।

खुद को लिखके खुदी को मिटाने को जी चाहता है,
ढूंढ रहे वो अक्स जो गुजरी पढ़ने को जी चाहता है।

सर सीने पे रखके दिलोंकी शिकायत सुनने को जी चाहता है,
दिल के लिफ़ाफे में लम्हें संजोडने को जी चाहता है।

हर इक धड़कन पे कई पैगाम लिखाने को जी चाहता है,
कोरे काग़ज़ पर इक नाम लिखाने को जी चाहता है।

अपने हाथों की खराशों का सलाम लिखने को जी चाहता है,
होठ ग़ज़ल के मिसरे आंखों से अफ़्साने बताने को जी चाहता है।

दिल के मुंडेर पर बुझते दिए को जलाने को जी चाहता है,
गहरी रात में बिखरे तारों को समेटने को जी चाहता है ।

नींद की वादियों में करवट बदलने को जी चाहता है,
धुंध का हुक्का पीके आसमानी चादर बिछाने को जी चाहता है।

किस्सा ए सूखन बनके दास्तां बन ने को जी चाहता है,
मोहब्बत का इजन राह ए इबादत करने को जी चाहता है।

हर इक सिसकते फासले को मिटाने को जी चाहता है।
किसी की याद से दिलका अंधेरा मिटाने को चाहता है।

बिजल जगड
मुंबई घाटकोपर

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