पहले मैं किताबें
पढ़ता थाl
पलटता था पन्ने सफेद काले
कभी मटमैले से,
नींद में भी उनींदा-सा
पढ़ता था।
होते थे उसमें राजा-रानी
के किस्से और महल में चलते
षड्यंत्र,
राजकुमारी और राजकुमार
करते थे प्रणय निवेदन भी,
पहले मैं किताबें पढ़ता थाl
उत्तुंग शिखरों से सज्जित
भारत माँ की गौरव गाथाएँ और
स्वतंत्रता पाने की जद्दोजहद
में रक्तरंजित क्रांतियाँ भी,
गोदान का होरी ले जाता था
मुझे शरतचंद्र की अनुपमा के पास।
ये किताबें एक संसार रचती थी,
मेरे लिए जब-जब मुझे उसकी
जरूरत होती थी।
कामायनी भी खेलती थी मेरी
चित्तवृत्तियों से
और वह तोड़ती थी पत्थर `निराला`
के आंगन से।
पहले मैं किताबों में डूबा घंटों तक
बिना लिए विराम
साँसों के स्पंदन को महसूस किए
बिना ही
बस पढ़ता जाता था उन्हें।
पूछ बैठी थीं महादेवी
एक दिन
कहाँ रहेगी चिड़िया?
कबीर,तुलसी,कालिदास
चंदबरदाई और दिनकर कभी,
देवकीनंदन,खुसरो का कोई
क्रम नहीं था,
बच्चन भारतेन्दु तक भी।
उन्हीं को पहन लेता था
ओढ़ता,बिछाता था
बारिशों में भजिए संग
ग्रीष्म में खस की चटाइयों
के पर्दे की आड़ में
किताबें ही मेरा मान बढ़ाती थीं।
गुम है अब सब कुछ जो
मुझमें आग लगाता था,
खोई-खोई-सी काठ की
आलमारियों की ओट से
झाँकती वो किताबें
सिर्फ देखती राह मेरी,
उंगलियों को चलते देखती हैं
सुबह,कभी देर शाम या
सोने के बाद सबके,
स्मार्टफोन की स्क्रीन पर,
पूछती नहीं सवाल,
घूरती भी हैं,सहम जाती हैं फिर
देखकर अस्त-व्यस्त जिंदगी।
पहले तो मैं
किताबें पढ़ता था?
#अवनीश जैन
परिचय:लेखन,भाषण,कला और साहित्य की लगभग हर कला में पारंगत अवनीश जैन बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हैं। ४७ बरस के श्री जैन ने महज ९ वर्ष की उम्र में पत्रकारिता से जिंदगी की शुरुआत की और विभिन्न व्यवसायों में यात्रा करते हुए कई वर्षों से शिक्षा और प्रशिक्षण में व्यस्त हैं। इंदौर निवासी श्री जैन कई औद्योगिक और रहवासी संस्थानों के वास्तु सलाहकार भी हैं। अब तक कई कविताएं-कहानियाँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। लिखना आपकी पंसद का कार्य है,साथ ही शिक्षा के छोटे-बड़े कई संस्थानों में प्रेरणादायक प्रशिक्षक के तौर पर अनेक कार्यक्रम कर चुके हैंl