
ज़रा शर्म करो ओ हैवानों,
ना इतने बड़े तुम पाप करो।
दौलत के मद में अंधे होकर,
ना मानवता का विनाश करो।
आफत के इस अवसर में,
स्वार्थ ना अपना सिद्ध करो।
होकर लालच के वशीभूत,
तुम ना खंजर से वार करो।
मोल भाव कर डाला तूने,
ना जाने कितनी जानों से।
चन्द पैसों की खातिर तूने
खेला कितनों के अरमानों से।
आटा चावल दाल ना छोड़ा,
ना छोड़ा सब्जी दूध को।
राशन पानी महंगा करके,
लूटा है सबको खूब जो।
छोड़े नहीं तूने इन्जेक्शन,
दवाइयाँ भी तूने छोड़ी नहीं।
थोड़ी सी रकम के चक्कर में,
तूने चीज कोई भी बक्शी नहीं।
ब्लड बैंक से तुम चोरों ने,
प्लाज़्मा भी चोरी कर डाला।
ऑक्सीजन की कालाबाजारी से,
अपनी बैंकों को भर डाला।
बनकर नरभक्षी भेड़िये ,
शवों को तुमने नोंचा है।
शरीर के सारे अंगों को,
बाज़ारों में तुमने बेचा है।
धरम बेचा ईमान भी बेचा,
अब बेच दिए कफ़न तूने।
बीज अपनी ही बर्बादी के ,
किये हैं निर्लज्ज दफन तूने।
तुम हैवानों की हैवानियत,
आज अपने चरम पर है।
इंसानियत भी आज लजाई है,
शरमाई तुम्हारे करम पर है।
महामारी की आड़ में तूने,
खेल मौत का खेला है।
दुनियाँ के हर कोने में ही,
तुम मक्कारों का रेला है।
करके इतने पाप अभी भी,
क्या पेट तुम्हारा भरा नहीं।
यूँ पाप तेरे ढोते ढोते ही,
फट ना जाए धरा कहीं।
स्वरचित
सपना (स. अ.)
प्रा.वि.-उजीतीपुर
वि.ख.-भाग्यनगर
जनपद-औरैया
उत्तर प्रदेश