हूँ किस्मत से मजबूर मगर,
मेहनत की रोटी खाता हूँ।
दौलत शौरहत तो पास नहीं,
बस मेहनत पे इतराता हूँ ।।
दो वक्त की रोटी की ख़ातिर,
दिन रात परिश्रम करता हूँ।
बहा कर खून पसीना अपना,
परिवार का पेट मैं भरता हूँ।
नदियों पर मैं बांध बनाता,
रेलों की पटरियाँ बिछाता हूँ।
खेतों में करके मेहनत मैं,
खाने को अनाज उगाता हूँ।
ईंट ,पत्थर ,मिट्टी ढो कर,
भवन आलीशान बनाता हूँ।
अपनी मेहनत से सबका,
जीवन आसान बनाता हूँ।
डाल जान जोख़िम में अपनी,
गटरों में डुबकी लगाता हूँ।
नित गलियों को साफ करके,
भारत को स्वच्छ बनाता हूँ
करके बिछौना धरती माँ का,
आँचल अम्बर का ओढूं मैं।
ठान अगर लूँ अपने मन में,
नदियों का रुख मोडूँ मैं।
आज वक्त है बड़ा विकट,
अब मजदूरी ना मिलती है।
महामारी दौर में अब ना,
आग पेट की बुझती है।
लॉक डाउन के हन्टर ने,
कर डाला है जीना दुश्वार।
काम मिले ना धन्धा कोई,
कैसे होगी अब नैया पार?
ए मालिक ए दाता मेरे ,
हम मजदूरों की सुनो पुकार।
डूब रही जीवन नैया अब,
बन जाओ आकर खेवनहार।
स्वरचित
सपना (स. अ.)
प्रा.वि.-उजीतीपुर
वि.ख.-भाग्यनगर
जनपद-औरैया