
अपने अपने गांवों से
हम बहुत प्रेम करते हैं।
इसलिए पड़ लिखकर
हम गाँव में रहने आ गये।।
अपने गाँव को हम
सम्पन्न बनाना चाहते हैं।
जिसे कोई भी गाँव वाले
रोजगार हेतु शहर न जाये।।
गाँव वालो से मिलकर
हम कुछ ऐसा काम करें।
ताकि अपने गांव को
आत्म निर्भर बना पाये।।
खुद के पैरों पर गाँव
अपना खड़ा हो जाये।
छोड़कर शहरों की जंजीरो को
नौ जवान गांवों में वापिस आये।।
आत्म निर्भर अपने गाँव को
करके हम दिख लाये।
जिसे देखने शहर वाले
अपने गाँव में आवे।।
गाँव के घर घर में
काम अब सब करते हैं।
गाँव की वस्तुये खरीदने को
शहर वाले गांवों में आते हैं।।
गाँव के सभी लोगों को
शिक्षित किया जा रहा।
बच्चें और बूड़े आज कल
स्कूलों में साथ पड़ते हैं।।
गांधीजी के स्वच्छय भारत का
सपना
हम मिलकर पूरा कर रहे हैं।
और गांधीजी को श्रध्दा सुमन
अर्पित मिलकर कर रहे हैं।।
गाँव को हम अपने
शहरों से सुंदर बना दिये हैं।
पर्यूषण मुक्त अपने गाँव को
हम मिलकर बना दिया हैं।।
इसलिए हम पड़ लिखकर
अपने गांव को लौटे हैं।
ताकि अपने गाँव को हम
आत्म निर्भर बना सके।।
जय जिनेंद्र देव
संजय जैन मुंबई