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जाने कौन-सा धन
मुझमें देखा!
जाने क्यूँ
मुझसे रुठ गई
गरीबी रेखा।।
लाख चाहा मैंने
इसके नीचे आऊँ,
इसके कदमों तले
बिछ जाऊँ
और पा जाऊँ
छोटा कूपन,
अब नहीं
सही जाती मुझसे
मँहगाई की तपन।।
हे ! गरीबी की रेखा माता
मुझ पर तू
हो जा प्रसन्न,
ताकि मैं भी खा सकूँ
एक रुपए किलो
अन्न।।
ये मँहगाई की मार
खा-खाकर
अब आने लगे हैं-चक्कर,
अब मेरा भी
मुँह मीठा करवा दे
दिलवा दे
शासकीय राशन दुकान से
शक्कर।।
यही अरज् है मेरी
बदल दे मेरी तकदीर,
बनवा दे मेरी भी
प्रधानमंत्री आवास योजना वाली
कुटीर।।
थक गया हूँ-मैं
काम कर-करके
हो गया हूँ-सुस्त ,
मुझे आज तक
नहीं मिली
कोई चीज़ मुफ्त।।
मेरी अंतिम ईच्छा
पूरी कर दे,
तुझसे निवेदन करुँ-मैं
अपनी आँखें मीचे !
एक बार तो ले-ले
हे ! गरीबी रेखा
मुझे अपने नीचे।।
—–रामशर्मा ‘परिन्दा’, मनावर
#रामशर्मा ‘परिन्दा’
परिचय : रामेश्वर शर्मा (रामशर्मा ‘परिन्दा’)का परिचय यही है कि,मूल रुप से शासकीय सेवा में सहायक अध्यापक हैं,यानी बच्चों का भविष्य बनाते हैं। आप योगाश्रम ग्राम करोली मनावर (धार, म.प्र.) में रहते हैं। आपने एम.कॉम.और बी.एड.भी किया है |
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Sat May 27 , 2017
पढ़-लिखकर जब बेटा बेरोजगार होता है तो,माँ बेटे दोनों परेशान होते हैं। एक दिन शाम को बेटा घर लौटता है। यदि घर में आकर कोई बच्चा माँ से कहे-मम्मी,मम्मी, लग गई मां,तो क्या कोई भी सुनेगा! यही सोचेगा कि,कहीं चोट-वोट लग गई होगी। सभी के मन में दुख-दर्द,हताशा, निराशा और […]
उम्दा रचना भाई शर्मा जी ,बधाई….।