Read Time3 Minute, 28 Second
वो दूर क्षितिज पर
सूरज निकल गया है,
अपनी जगमग किरणों से
उसने हमारी असंख्य,
आशाओं को रौशन
कर दिया है,
कल शाम की सुप्त हुई
आकांक्षाओं को
जाग्रत कर दिया है,
अब चलो… उठ जाते हैं
अपनी उम्मीदों की गठरी को
उमंग के कांधे पर लादकर
घर से निकल जाते हैं,
कुछ करने का ज़ज़्बा लेकर
अपने क़दमों को आगे बढ़ाते हैं
ये मुमकिन है…कि,
राह की मुश्किलें
हमें डराएंगी,
रास्ता रोककर हमारा
हमारे साहस को सताएंगी,
कुछ मिटटी के नुकीले कण
हमारे पैरों के साथ,
हमारे हौंसले को भी घायल करेंगे
पर … हम,
न डरेंगे…न थकेंगे…
बस दूर क्षितिज पर
शनै…शनै बढ़ते हुए,
सूरज को देखकर
चलते रहेंगे,
तब तक…जब तक
हमारी आकांक्षाओं को
पंख न लग जाएं,
जब तक वो उड़कर
आसमान को न छू जाएँ
बस,तब तक चलते जाना है,
आगे बढ़ते जाना है
दूर…दूर…दूर…
बहुत दूर तक जाना है,
अपने सपनों की मंज़िल को
पाना है…
सपनों की मंज़िल को
पाना है…॥
#अनुभा मुंजारे’अनुपमा’
परिचय : अनुभा मुंजारे बिना किसी लेखन प्रशिक्षण के लम्बे समय से साहित्यिक क्षेत्र में सक्रिय हैं। आपका साहित्यिक उपनाम ‘अनुपमा’,जन्म तारीख २० नवम्बर १९६६ और जन्म स्थान सीहोर(मध्यप्रदेश)है।
शिक्षा में एमए(अर्थशास्त्र)तथा बीएड करने के बाद अभिरुचि साहित्य सृजन, संगीत,समाजसेवा और धार्मिक में बढ़ी ,तो ऐतिहासिक पर्यटन स्थलों की सैर करना भी काफी पसंद है। महादेव को इष्टदेव मानकर ही आप राजनीति भी करती हैं। आपका निवास मध्यप्रदेश के बालाघाट में डॉ.राममनोहर लोहिया चौक है। समझदारी की उम्र से साहित्य सृजन का शौक रखने वाली अनुभा जी को संगीत से भी गहरा लगाव है। बालाघाट नगर पालिका परिषद् की पहली निर्वाचित महिला अध्यक्ष रह(दस वर्ष तक) चुकी हैं तो इनके पति बालाघाट जिले के प्रतिष्ठित राजनेता के रुप में तीन बार विधायक और एक बार सांसद रहे हैं। शाला तथा महाविद्यालय में अनेक साहित्यिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेकर विजेता बनी हैं। नगर पालिका अध्यक्ष रहते हुए नगर विकास के अच्छे कार्य कराने पर राज्य शासन से पुरस्कार के रूप में विदेश यात्रा के लिए चयनित हुई थीं। अभी तक २०० से ज्यादा रचनाओं का सृजन किया है,जिनमें से ५० रचनाओं का प्रकाशन विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में हो चुका है। लेखन की किसी भी विधा का ज्ञान नहीं होने पर आप मन के भावों को शब्दों का स्वरुप देने का प्रयास करती हैं।
Post Views:
564
Sat Sep 16 , 2017
सूरज है आग का गोला, जलता है ,बनकर शोला। किरणों में है,पराबैंगनी, सबके लिए,घातक बनी॥ धन्यभाग,हम मानव का, जो कवच है इस धरा का। ओज़ोन परत वो कहलाए, घातक किरणें आ न पाए॥ आज छेद होने का है डर, भोग विलास का है असर। एसी,फ्रिज,उर्वरक से रिसे, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन गैसें॥ […]