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कोई भी इंसान
जब मजबूर होता है
खुद से वह
बहुत दूर होता है
जानकर भी राज़ सारे
दिखता है अनजान
बनकर रह जाता है
हालातों का ग़ुलाम
ऐसा भी होता है
चाहता है जब सारा ज़माना
अपनों के लिए
तब इंसान होता है बेगाना
कोई भी इंसान
जब हो जाता है लाचार
समझ से परे
होता है उसका व्यवहार
आलोक कौशिक
(साहित्यकार एवं पत्रकार)
बेगूसराय (बिहार)
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