
” नारी तुम केवल श्रद्धा हो
विश्वास रजत नभ पग तल में
पीयूष स्रोत सी बहा करो
जीवन के सुंदर समतल में “
जयशंकर प्रसाद जी
हे नारी ! तुम क्या हो आज तक यह कोई नहीं समझ पाया है। तुम तो माता हो, बहन हो, पत्नी हो, मातृभूमि हो किंतु तुम कुछ और भी हो। तुम धरती हो, वह धरती जिस पर तेरे ही बेटे हल चलाते हैं, नव निर्माण करते हैं ।तुम तो देवी हो शायद उससे भी बढ़कर हो किंतु आज के समाज मैं तुम्हें केवल कोमल, अबला और कमजोर ही माना है ।तुम आगे बढ़ो और इस सृष्टि में एक नई सृष्टि का निर्माण करो
हमारे प्राचीन इतिहास के पन्नों में महिलाओं की गौरवमयी कीर्ति को लिखा गया है ।हमारे पूर्वजों का कथन है जहां स्त्रियों की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं ।पूजा से तात्पर्य है केवल उनकी मान मर्यादा की रक्षा व उनके अधिकारों की रक्षा । उन्हें गृह लक्ष्मी व गृह देवियों के नाम से संबोधित किया जाता था। उन्हें पुरुषों के समान शिक्षा भी मिलती थी।
उन्हें युद्ध पर भी ले जाया जाता था ।देवासुर संग्राम में कैकई ने अपने अद्वितीय कौशल से महाराजा दशरथ को चकित कर दिया था ।परिवार में उनका पद अत्यंत प्रतिष्ठा पूर्ण था बिना उनकी अनुमति के कोई भी कार्य नहीं होता था जीवन में ऐसे अनेक अवसर होते थे जिसमें वह पुरुषों से भी आगे निकल जाती थी उन्हें अपनी योग्यता अनुसार पति का घर भी चलाने का अधिकार था और जीने का अधिकार भी था।
संसार परिवर्तनशील होता गया और यह परिवर्तन हमारे समाज की महिलाओं को भी सहन करना पड़ा ।देश में परतंत्रता के समय में स्त्रियों के स्वतंत्रता का भी अपहरण हुआ। स्त्रियों का प्रेम , बलिदान और सर्वस्व समर्पण की भावना कालांतर में उन्ही के लिए जहर बन गई ।समाज की घृणित विचारधारा ने उन्हें पुरुषों के बराबरी के पद से हटा दिया ।धीरे धीरे उनका स्थान समाज में निम्न होता गया और उनको पर्दे में रहने के लिए मजबूर कर दिया गया। उनकी शिक्षा का अधिकार भी उनसे छीन लिया गया। तभी तो महान आदर्शवादी एवं समाज सुधारक गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है
” ढोर गवार शुद्र पशु नारी
यह सब ताड़न के अधिकारी “
वर्तमान समय में भी नारी की स्थिति कुछ ऐसी ही है l चाहे स्वतंत्र रूप से हम कुछ भी कहें या लिखें। आज भी अंधविश्वास ,अशिक्षा , दहेज़ , भ्रूण हत्या और बलात्कार आदि सामाजिक दोष नारी समाज के जीवन को कमजोर किते हुए हैं।
आज उनकी शिक्षा का उचित प्रबंध तो किया जा रहा हूं किंतु शिक्षा केवल डिग्रीओ का वितरण चल रहा है उन्हें आत्मनिर्भर नहीं बनाया जा रहा है । क्या साक्षर होने से ही काम चल पाएगा उनके परिवार का। क्या वह अपने पति की अर्धांगिनी बनकर उसको आर्थिक रूप से मदद कर पाएगी।
तकनीकी रूप से आधुनिक होती दुनिया में वर्तमान में जहां पूंजीवाद समाज में स्थापित हो गया है और संवेदनाएं ,नैतिक मूल्य और संस्कार अर्थ हीन होते जा रहे हैं। आज सबसे अधिक असुरक्षित महिलाएं ही हो रही हैं क्योंकि पारिवारिक और सामाजिक तनाव के बाद जब वह घर की दहलीज से बाहर निकलती है काम करने के लिए या किसी अन्य कारण से तो सामूहिक बलात्कार जो कि राजनीतिक और व्यक्तिगत प्रतिशोध एवं पुरुष सत्ता को चुनौती दे रही महिलाओं का आत्म सम्मान और स्वाभिमान को चोट ग्रस्त करने के लिए किया जा रहा है ।आज पुरुष समाज का एक वर्ग जो कि जानवर से भी बदतर हो गया है ।वह बलात्कार के बाद उसे जिंदा रहने का भी अधिकार नहीं देता और उसे जलाकर मार डालता है और हमारी राजनीति एवं राजनैतिक एवं प्रशासनिक लोग जो हमारी रक्षा के लिए बनाए गए थे ।आज वह उन नर पिशाचों को आश्रय दे रहे हैं ।ऐसे में डरी हुए महिलाएं क्या एक निडर निर्भीक और मजबूत समाज की रचियेता बन पाएंगी या फिर धर्म और सत्ता के हाथों की कठपुतलियां ही बनी रहेंगी।
वर्तमान हालातों को देखकर लगता है कि अब भारत भूमि पर रानी लक्ष्मीबाई ,रानी दुर्गावती आदि जैसी वीरांगना पैदा ही नहीं हो पाएंगी।
उपर्युक्त समस्याएं केवल भारतीय नारी ही नहीं बल्कि
विश्व की अधिकांश महिलाओं के साथ हैं जिनके निदान के लिए अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाने लगा और पत्र-पत्रिकाओं, न्यूज़ चैनल एवं सामाजिक आयोजन को आयोजित किया जाने लगा ।कानूनी भाषा को भी जामा पहनाया जाने लगा किंतु स्थिति वही के वही है ।आज महिला दिवस के ही दिन महिलाओं को सम्मान, आयोजन तक ही दिया जाता है और फिर वही दोयम दर्जे का बर्ताव समाज के द्वारा किया जाता है ।मैं सोचती हूं क्या सचमुच हमें झूठे महिला दिवस को मनाने की की आवश्यकता है या हमें अपने समाज की सोच को बदलने की जरूरत है। कब तक हमारा महिला समाज अपने आप को भ्रम में डाले रहेगा।
चलते चलते अंत में मेरी यही अभिलाषा समस्त नारी समाज के लिए है कि तुम अबला नहीं बल्कि एक सबला बन कर आगे आओ और अपने पर लिखी गई यह पंक्तियां जो तुम्हारे लिए कफन की तरह है मिटा दो
”हाय री अबला तेरी यही है कहानी
आंचल में दूध है और आंखों में पानी।”
स्मिता जैन