दंश

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कैंसर की ये बीमारी ,
जान लेती है हमारी।
डसे नागिन सी ये हमको,
इसका हर दंश है भारी।

आए छुपते छुपाते ये,
ना कोई शोर है करती।
भनक लगे जब हमको,
अंतिम वार ये करती।

तन का खून है चूसे,
लूटे दौलत हमारी ये।
बुझाती दीप जीवन का,
करती कंगाल हमको ये।

हम सबका जीना ये,
सदा दुश्वार है करती।
सुख चैन हम सबका,
सदा हमसे है हरती।

यदि कैंसर से बचना है,
तो धूम्रपान मत करना।
गुटका और शराब का,
कभी सेवन मत करना।

रिफाइंड खाद्य पदार्थों का,
का सेवन कम करना।
पराबैंगनी किरणों से,
सदा बचके तुम रहना।

एक्सरे, रेडिएशन से,
सदा दूर तुम रहना,
डिब्बा बन्द भोजन से,
सदा दूर तुम रहना।

ब्रोकली ,ग्रीन टी पीना,
टमाटर ,अदरक भी खाना।
ब्लू बेरी और लहसुन को,
तुम भूल मत जाना।

योग,व्यायाम से अपना,
तन मन स्वस्थ तुम रखना।
दिनचर्या हो सरल अपनी,
दुर्व्यसनों से भी है बचना।

कैंसर फैले ना छूने से,
ये सबको बताना है।
पीड़ित को प्यार से,
हमें गले लगाना है।

उम्मीद और हिम्मत से,
कैंसर को मात है देना।
डरना नहीं डराना है,
कैंसर को भगाना है।

जन जन को बताएं हम,
जागरूकता फैलाएं हम।
कैंसर की बीमारी को,
आओ जड़ से मिटाएं हम।

स्वरचित
सपना (स. अ.)
जनपद-औरैया

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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