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भगवान से भी बढ़कर एक चीज देखता हूँ,
उठकर सुबह को माँ की तस्वीर देखता हूँ।
होता है दर्द मुझको लगता हूँ मैं छिपाने,
आँखों में मगर माँ की मैं नीर देखता हूँ।
कुछ ऐसे भी जिनसे दूर
साया माँ का,
ऐसे अभागों की तकदीर देखता हूँ।
जो कमी मुझे हरदम महसूस होती रहती,
कुछ औरों के भी दिल में यही पीर देखता हूँ।
#अमित शुक्ला
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