शब-ए-इंतज़ार

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vivek

शब-ए-इंतज़ार में सितारे टिमटिमाते रहे,
चाँद बे-ख़ौफ़ खिलखिलाता रहा।

रो पड़ी शबनम आकर जमीं के आगोश में,
सहर भी न थी अपने होश में।

जो पूछा क्या हुआ जबाब एक आया,
तपता है सूरज पिघलते हैं हम।

हर बार इल्जाम क्यों हम पर ही आया,
ज़माने ने शबनम के पैरों तले क्यों दबाया।

                                                                                 # विवेक दुबे

परिचय : दवा व्यवसाय के साथ ही विवेक दुबे अच्छा लेखन भी करने में सक्रिय हैं। स्नातकोत्तर और आयुर्वेद रत्न होकर आप रायसेन(मध्यप्रदेश) में रहते हैं। आपको लेखनी की बदौलत २०१२ में ‘युवा सृजन धर्मिता अलंकरण’ प्राप्त हुआ है। निरन्तर रचनाओं का प्रकाशन जारी है। लेखन आपकी विरासत है,क्योंकि पिता बद्री प्रसाद दुबे कवि हैं। उनसे प्रेरणा पाकर कलम थामी जो काम के साथ शौक के रुप में चल रही है। आप ब्लॉग पर भी सक्रिय हैं।

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