पश्चाताप के आंसू

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नीलिमा को लौटने में बहुत देर हो गई थी । वैसे भी वह चार दिन बाद अपने घर लौटी थी । घर क्या किराये का एक कमरा जिसमें वह केवल रात को सोने ही आती थी दिन भर तो उसे अस्पताल में मरीजों के साथ रहना पड़ता था । उसे अब समझ में आया था ‘‘डाक्टर’’ होने का मतलब । वह तो बचपन से ही कहती थी ‘‘माॅ मुझे तो आप खूब पढ़ाना बड़़ी दीदी के जैसा नहीं मैं तो डाक्टर बनूंगीं’’ । माॅ ने पढ़ाया भी बहुत । उसे जहां जाना चाहा उन्होने वहां भेज दिया । वह एक-एक सीढ़ीयां चढ़ते हुए डाक्ठरी की अंतिम पढ़ाई पूरा कर छोटे शहर के सरकारी अस्पताल में पदस्थ हो गई । शहर छोटा जरूर था पर आबादी पर्याप्त थी और कोई अस्पताल न होने से मरीजों की भीड़ लगी रहती । वह सुबह ही अस्पताल पहुंच जाती तो रात को ही घर लौट पाती थी । वैसे तो अस्पताल में और भी डाक्टर थे पर मरीजों की भीड़ उसके पास ही सबसे अधिक रहती । वह एक-एक मरीज की जांच ध्यान से करती और उनकी सारी तकलीफें प्यार से सुनती फिर वह दवा लिखती । मरीज उसके व्यवहार के कारण उसको ही दिखाता । उसके आने के पहिले ही अस्पताल में उसके कमरे के सामने लम्बी लाइन लग जाती । वह बगैर झंुझलाये मरीजों को देखती रहती । इसी के चलते वह फुरसत पा ही नहीं पाती थोड़ी बहुत फुरसत मिलती भी तो वह वार्ड में चली जाती जहां दर्जनों मरीज उसका इंतजार करते मिलते । ऐसा करते-करते उसे शाम हो जाती । कई बार वह अस्पताल से निकलने वाली ही होती कि कोई इमरजेन्सी केस आ जाता तो वह फिर रूक जाती । वह सोचती कि आखिर वह अपने घर जाकर करेगी भी क्या अकेली तो रहती ही है बोर ही होगी इससे अच्छा है मरीजों को देख ले । वैसे भी जहां रहती है वह अस्पताल से बहुत दूर है । उसे अस्पताल का क्वाटर नहीं मिला था तो उसने एक कालोनी में कमरा किराये पर ले लिया था । स्कूटी से आना-जाना करती । खाना के लिये डिब्बा लगा रखा था तो दोपहर को तो अस्पताल में दे जाता और शाम को फोन लगाकर पूछ लेता उसके हिसाब से कभी घर तो कभी अस्पताल में ही डिब्बा दे देता । लगभग रोज ही ऐसा होता कि वह दोपहर का खाना खा ही नहीं पाती उसे ध्यान ही नहीं रहता जब तक ध्यान आता तब तक भूख ही खत्म हो चुकी होती वह डिब्बा किसी मरीज के साथ आये हुए व्यक्ति को दे देती ।
सारे देश में कोरोना ने अपना जाल फैला लिया था । प्रतिदिन कोरोना से प्रभावित होने वाले मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही थी । मरीज भी घबराहट में था टी.व्ही. चैनलों से लेकर अखबारों तक में कोरोना की खबरें मुख्य हेडिंग बन रहीं थी । आम व्यक्ति की घबराहट और बढ़ जाती । आम आदमी वास्तव में कोरोना को समझ ही नहीं पा रहा था, उसे तो इतना भर पता था कि सर्दी-जुखाम हो जाये तो कोरोना हो सकता है । इस घबराहट के चलते अस्पताल में मरीजों की संख्या बढ़ने लगी थी । ऐसा भी नहीं था कि सारे लोग केवल वहम के शिकार थे कुछ कोरोना से प्रभावित मरीज भी सामने अने लगे थे । नीलिमा का काम बढ़ गया था । उसे उन मरीजों को भी र्धर्य बंधाना पड़ रहा थाा जो वहम के शिकार है और उन मरीजों का इलाज भी करना पड़ रहा था जो वास्तव में कोरोना से प्रभावित हैं । उसके साथ के कुछ डाक्टर तो कोरोना फैलते ही अपनी डयूटी से गायब हो गये । उनके बगैर बताये चले जाने से अस्पताल की व्यवस्थायें भी चरमरा रहीं थीं । वैसे तो उसकी माॅ ने भी उसे फोन किया था ‘‘बेटी देखो कोरोना बहुत फैल रहा है तुम तो नौकरी छोड़कर घर आ जाओ……मेरा जी बहुत घबराता है’’
‘‘अरे माॅ आप मुझे नौकरी छोड़ने का बोल रहीं हैं…….मैं डाक्टर हूॅ……और डाक्टर को लोग भगवान का दर्जा देते हैं……मैं उन्हें इस हाल में छोड़कर आ जाऊॅ….! उसने आत्मविश्वास के साथ कहा ।
‘‘अरे मैं माॅ हूॅ तेरी……मुझे तेरी चिन्ता है….तू समझती क्यों नही है…..’’
‘‘नहीं माॅ….आप स्वार्थ के लिये मुझे गलत सलाह न दें……..मैं तो यहीं रूकूंगीं और मरीजों की सेवा करती सहूंगीं….आप मेरी चिन्ता मत करो……’’ नीलिमा हालांकि एक माॅ के मनोभावों को समझ रही थी पर उसे इस बात पर नाराजी थी कि उसकी माॅ ही उसे गलत सलाह दे रहीं हैं ।
नीलिमा का सारा दिन अब मरीजों के बीच में ही गुजर रहा था । लोगों में बहुत घबराहट थी वह उन्हें दिलासा दिलाती ‘‘अरे आप बेकार घबरा रहे हें कोरोना हो भी गया तो क्या…..आप स्वस्थ्य हो जायेगें……’’ । पिछले चार दिनों में उसके अस्पताल में मरीजों के आने का ऐसा सिलसिला बना कि वह अपने घर जा ही नहीं पाई । अस्पताल में ही जो उसका रेस्ट रूम है वहीं वह अपनी दिनचर्या पूरी कर लेती और फिर मरीजों की देखभाल में लग जाती । वैसे तो वह कल रात को अपने घर की ओर निकल ही गई थी पर जैसे ही उसने स्कूटी स्टार्ट की तभी एक मरीज आ गया । उसने बाहर ही उसे चेक किया उसे मरीज की हालत कुछ ज्यादा ही गंभीर समझ में आई तो उसने अपने लौटने का कार्यक्रम कैंसिल कर दिया । वह वापिस अपने कमरे में आ गई और फिर रात भर मरीज के सिराहने खड़ी रहकर उसका इलाज करती रही पर इसके बाबजूद भी उस मरीज को बचाया नहीं जा सकता । सुबह होते-होते उसने अंतिम सांस ली । नीलिमा उसे बचाने के लिये अंतिम प्रयास के रूप में इंजेक्शन लगा रही थी पर इसके पहिले ही उसने दम तोड़ दिया । नीलिमा बहुत बैचेन हो गई । ऐसा नहीं था कि नीलिमा ने पहली बार किसी मरीज को दम तोड़ते देखा था । डाक्टरी पेशे में तो ऐसे घटनाक्रम होते रहते हैं पर जिस मरीज की मौत हुई थी उसकी पत्नी की चीखें उसके कानों में अंगारा घोल रहीं थीं । उसके अस्पताल में कोरोना से होने पाली यह पहली मौत थी । नीलिमा अपने कमरे में आकर निःशब्द बैठी रही थी बहुत देर तक उसके कानों में उस मरीज की पत्नी की चीखें गूंज रहीं थीं ।
आज फिर कुछ केस कोरोना प्रभावितों के आए थे । उनकी पाजेटिव रिपोर्ट आते ही नीलिमा ने इलाज शुरू कर दिया था । नीलिमा अभी तक भावशून्य थी । उसके हाथ केवल यंत्रवत ही चल रहे थे । एक दर्जन से ज्यादा कोरोना मरीज उसकी अस्पताल में आ चुके थे और सैंकड़ों मरीजों की रिपोर्ट निगेटिव आ चुकी थी । नीलिमा कोविड सेन्अर तो पीपीईकिट पहनकर जाती थी पर बाकी मरीजों को वह केवल मुंह पर मास्क और हाथों में दास्ताने पहनकर देखती । बहुत थक जाने के बाद भी उसके चेहरे से मुस्कुराहट गायब नहीं होती थी । ‘‘देखो डाक्टर के पास सबसे बढ़िया दवा मुस्कुराट होती है जो मरीज को आधा स्वस्थ्य कर देती है’’ उसके गुरू ने उसे ट्रेनिंग के दौरान ही बता दिया था । वह इस बात को समझ भी गई थी कि एक परेशान मरीज और उसके परिवार के लोगों के लिये आशा का केन्द्र बिन्दु केवल डाक्टर ही होता है यदि वह उन्हें सान्तवना दे दे तो मरीज को स्वस्थ्य होने का आत्मबल बढ़ जाता है । नीलीमा विगत चार दिन से बगैर थके काम कर रही थी पर इसके बाबजूद भी उसने मरीज के उपर कभी झुंझलाहट प्रदशित नहीं की थी । आज सुबह मरीज की मौत के बाद तो उसका मन बिल्कुल भी नहीं लग रहा था पर फिर भी दिन भर मरीजों का चेकअप करती रही । दोपहर को माॅ का फोन आया था ‘‘हैप्पी बर्थ डे बेटा…’’ ।’’ पर फोन अस्पताल के फोन पर आया था । माॅ की तो आदत ही है चैकाने वाली । हो सकता है कि माॅ को लगा हो कि उस दिन जब वो घर लौटने का कह रहीं थी और उसने नहीं माना था उससे वो मुझे नाराज मान रही हों और उनको लगा हो कि कहीं मैं मोबाइल पर उनका नम्बर देखकर काट ही न दूं । माॅ भी कितना सोचती हैं । नीलिमा ने गहरी सांस ली । चलो माॅ ने उसे याद तो दिलाया कि आज उसका बर्थ डे है । अरे हां आज तो उसका बर्थ डे है । उसे तो बिल्कुल भी ध्यान ही नहीं रहा । उसने दीवाल पर लगे कैलेण्डर को देखा ‘‘30 मार्च..’’ । ओहो वो तो बिल्कुल ही भूल गई थी । पर माॅ को तो ध्यान रहा आया । जब वह घर पर रहती थी तब माॅ रात को 12 बजते ही उसे सोते से उठाकर विश किया करती थीं ‘‘हैप्पी बर्थ डे बेटा’’ । वह झुंझला पड़ती ‘‘क्या यार माॅ आप रात को 12 बजे मुझे नींद से जगा रही हों……सुबह विश कर देतीं…’’ । वह चादर ओढ़ लेती । माॅ उसकी चादर खींचते हुए उसके गालों पर किस करती ‘‘अरे पगली…..सुबह तेरे जागने के पहले से ही फोन की घंटियां घनघनाने लगती हैं फिर तुझे मेरी सुध कहां रहती है…वैसे भी तुझे सबसे पहिले विश मुझे ही करना चाहिये इसलिये कर देती हूॅ……चल अब सो जा…..’’ कहती हुई चादर ओढ़ा देती पर वह बहुत देर तक जागती रहती ‘‘माॅ तो बस माॅ ही होती है’’ उसके चेहरे पर मुस्कान खिल जाती । बहुत दिनों से उसका जन्मदिन घर पर कहां आया था । हास्टल में तो जन्म दिन मना लिया जाता पर सच तो यह है कि अपने घर में भले ही पूजा-पाठ की व्यस्ततओं में जन्म दिन मनाया जाता हो पर लगता बहुत अच्छा था । गत वर्ष तो वो अपने साथ डाक्टरी पढ़ रहे सभी को होटल खाना खिलाने ले गई थी । पर आज किसी का फोन क्यों नहीं आया । क्या सभी लोग मुझे इतने जल्दी भूल गए । उसने अपने बेग से मोबाइल निकाला ‘‘अरे यह तो बंद है…..ओहो…..इसे चार्ज ही नहीं किया….ओहो…….वह तो कल रात को ही डिस्चार्ज हो गया हो……उसने सोचा था कि घर पर जाकर चार्ज में लगा देगी पर वो घर जा ही कहां पाई…अचानक पेशेन्ट आ गया और वह उसके इलाज में जुट गई….’’ । वह बहुत देर तक मोबाइल को यूं ही अपने हाथों में पकड़े रही ‘‘माॅ ने भी इसिलिए ही उसके अस्पताल के फोन पर काल की थी…….वे तो रात से ही परेशान हो रहीं होंगीं……’’ उसके चेहरे पर अफसोस के भाव उतर आए और भी लोग फोन लगा रहे होंगे पर उन्हें मोबाइल बंद बता रहा होगा । उसने अपने माथे पर हाथ रख लिया था ।
आज एक नये डाक्टर ने ज्वाइन किया था । उसने उसे सारी बातें समझा दीं थीं अस्पताल की भी और डाक्टर के क्या दायित्व होते हैं वह भी ।
‘‘देखो निखिल तुम नये हो तुम को अभी इस पेशे को बहुत समझना है । डाक्टरी में जितना हम किताबों से समझते हैं उससे कहीं ज्यादा अपने अनुभवों से सीखते हैं और अनुभव तब ही बढ़ता है जब हम काम करेगें…..वैसे भी यह भी कठिन समय चल रहा है । कोरोना के कारण आम व्यक्ति भयभीत भी है और परेशान भी इसलिये तुम यहां अपनी क्षमता से अधिक काम करने का प्रयास करना……मुझे उम्मीद है कि तुम मेरी बातों को समझ रहे होगे । ’’
निखिल ने सहमति में अपना सिर हिला दिया था । नीलिमा नहीं चाहती थी कि निखिल यहां में पूर्व से ही जमे डाक्टरों के घेरे में आए जो काम करने में आलस्य करते हैं । कोरोना काल में भी वे डाक्टर लापरवाही करते रहे जिसके कारण ही उसके ऊपर काम का बोझ बढ़ गया था । वह उन डाक्टरों से कुछ नहीं कह सकती थी वे उनके सीनियर थे पर निखिल जूनियर था उसे अभी बहुत कुछ सीखना है इसलिये उसने उसे सारी बातें समझा दी थीं । वैसे तो जूनियर वह भी थी पर निखिल से तो सीनियर ही थी न । उसने सोच लिया था कि यदि निखिल ने उसकी बात मानीं तो वह उसे आगे बढ़ने में मदद करती रहेगी । वैसे उसे लग रहा था कि निखिल भी उसके जैसा ही गंभीर रहेगा । आज वह उसके कहने पर ही घर लौट रही थी ।
आमतौर पर रात को दस बजे तक मोहल्ले की हलचल खत्म हो जाती है । वह जब भी अस्पताल से लौटती थी उसे मोहल्ले का एकाध कोई ही मिलता था । चूंकि उसका किसी से ज्यादा परिचय नहीं था इसलिये वह किसी से कोई बात करती भी नहीं थी । थोड़ी बहुत बाते वह अपने मकान मालिक की बुजुर्ग माॅ से कर लेती थी ‘‘कैसी हैं आप माॅ जी’’
‘‘मै तो ठीक हूॅ बेटी……तू कभी कभी आराम भी कर लिया कर कितना काम करती है तूरा पता ही नहीं चलता’’ वे लाड़ से कहती । वह मुस्कुरा पड़ती ।
‘‘हंसों नहीं…..मैं तेरी माॅ जैसी हूॅ……मेरी बात गंभीरता से सुनो….’’ कहते हुए वे हंस पड़ती ।
‘‘हाॅ माॅ जी आप तो मेरी माॅ ही हैं…….यहां मेरा और कौन है आपके सिवाय’’ कहते हुए उनके गले से लग जाती । वे उसके सिर पर हाथ रख देती । पर ऐसा कभी कभी ही हो पाता था । अब तो जब से कोरोना फैला है वह एकाध बार ही घर आई है । आज तो वह वैसे भी चार दिनों बाद लौटी है । कालोनी के मुख्य गेट को पार करने वाले के बाद उसकी स्कूटी के लाइट ने चारों ओर उजियारा फैला दिया था । वैसे भी आज कालोनी में चहल पहल थी सारे लोग जाग रहे थे और बाहर ही बैठे थे । स्कूटी का लाइट पड़ते ही उसकी निगाह में माॅ जी भी आ गई थीं । उसे अचरज जरूर हुआ पर हो सकता है कि कोई कार्यक्रम बगैरह हो इसलिये सभी एक साथ बैठे हैं पर कोरोना चल रहा है और लांकडाउन भी लगा हुआ है फिर भी ।
नीलिमा अपनी स्कूटी को खड़ी भी नहीं कर पाई थी कि सारे लोग उसे अपने पास आते दिखे । वह चैंक गई ।
‘‘ऐ……सुनो……डाक्टर…….तुम यहां से लौट जाओ……तुमको एन्ट्री नहीं मिलेगी……’’
नीलिमा आश्चर्य में थी……..
‘‘सुन बेटी…….तुम यहां से चली जाओ…’’ अबकी बार बुजुर्ग महिला ने बोला था ।
उसका आश्चर्य और बढ़ता जा रहा था । उसे समझ में नहीं आ रहा था कि सभी लोग उसे यहां से चले जाने को क्यों कह रहे हैं ।
उसने अपनी स्कूटी को स्टेंड पर लगा दिया था । उसका आश्चर्य और बढ़ता जा रहा था । उसे समझ में नहीं आ रहा था कि सभी लोग उसे यहां से चले जाने को क्यों कह रहे हैं ।
उसने अपनी स्कूटी को स्टेंड पर लगा दिया था ।
वहां उपस्थित सभी लोग उसे घूर रहे थे । उसने अंदाजा लगाया कि कालोनी के सारे लोग वहां जमा है महिलायें भी हैं और बच्चे भी । वह खामोश खड़ी थी
‘‘देखो मेम…..हम सभी कालोनी वालों ने तय किया है कि आप इस कालोनी में नहीं रह सकतीं इसलिये आप अभी इसी वक्त यहां से चले जायें….’’ । जिसने बोला था उसे वो नहीं जानती थी
‘‘देख बेटी…..तू हमारा घर खाली कर दे अभी के अभी……’’ अबकी मकानमालिक की मां ने बोला ।
‘‘पर आप बतायेंगे कि आप लोग मेरे साथ इस तरह का बर्ताव क्यों कर रहे हैं’’ नीलिमा को बोलना ही पड़ा…..वह अभी तक कुछ समझ ही नहीं पा रही थी ।
‘‘देखो मेडम……शहर में कोरोना बहुत फैल रहा है…….छूत की बीमारी हैं….. आप डाक्टर हैं दिन भर कोरोना मरीजों का इलाज करती हैं यदि आपके साथ कोरोना यहां आ गया तो……..देखो मेम हम लोग बाल-बच्चे वाले लोग हैं हम लोग यह खतरा नहीं ले सकते……..’’ । एक ही सांस में उसने बोला था जिसे नीलिम नहीं जानती थी । नीलिमा हतप्रभ थी । वह खामोश रही ।
‘‘देखो तुम अभी के अभी चली जाओ यहां से……हम कोई रिस्क नहीं लेना चाहते…..’’
बहुत सारी आवाजें एक साथ आ रहीं थीं । नीलिम को आश्चर्य इसलिये भी हो रहा था कि जो लोग उसे चले जाने का कह रहे थे वे पढ़े लिखे थे ।
‘‘देखिये…..आप मुझे आज रात यहीं रूक जाने दीजिये…..कल मैं अपना सामान लेकर चली जाउंगी..’’
नीलिमा असहाय सा महसूस कर रही थी ।
‘‘नहीं……आप अभी जाओ यहां से…….’’
उन बुजुर्ग महिला की कर्कश आवाज थी जिन्हें वह माॅ कहती थी ।
‘‘अब मैं इतनी रात को कहां जाऊंगी…..वैसे भी मैं बहुत थकी हूॅं.केवल आज रात तो रूक जाने दें…’’
नीलिमा की आवाज में दर्द था । पर वहां उपस्थित कोई भी व्यक्ति उसके दर्द को नहीं समझ रहा था ।
‘‘आप कहीं भी जायें……पर यहां से अभी ही चली जायें…..’’
‘‘अच्छा ठीक है मुझे कुछ सामान निकाल लेने दो……’’
नीलिमा को काई विकल्प समझ में नहीं आ रहा था ।
‘‘नहीं हम तो तुमको घर के अंदर जाने ही नहीं दे सकते…..तुम कोरोना से लेके आई हों तो…..’’
बुजुर्ग महिला ने साफ इंकार कर दिया । वैसे तो नीलिमा को उनसे ही सबसे अधिक उम्मीद थी कि उसे बेटी कहती हैं वे उसकी परेशानी को समझेगीं पर वे ही सबसे ज्यादा उसे बुरा भला कह रही थीं । वहां उपस्थित लोगों ने उनकी हां में हां मिलाया ।
‘‘देखो आपको तो हम घर के अंदर जाने नहीं दे सकते …..आप चाबी दे दें…हम ही आपका सारा सामान निकाल कर बाहर पटक देते हैं….’’
नीलिमा के चेहरे पर आप गुस्सा के भाव आ गए थे । उसे लगने लगा था कि लोग अब सीमा लांघ रहे हैं । उसने गुस्से में उस व्यक्ति को घूरा फिर उन बुजुर्ग महिला को भी घूरा
‘‘यू शटअप…..मैं डाक्टर हूॅ और आपके शहर के लोगों का ही तो इलाज कर रही हूॅ…..और आप मुझ से इस तरह का व्यवहार कर रहे हैं…..शर्म आनी चाहिये आपको……..’’
‘‘ये जा…..शरम…..वरम छोड़ो और चली जाओ यहां से……’’ बहुत बुरा मुंह बनाया था बुजुर्ग महिला ने
‘‘आप बुजर्ग महिला होकर मुझ से इस ढंग से बात कर रही हैं……वैसे तो मैं अभी पुलिस को फोन करके बुला सकती हूॅ……..पर मैं ऐसा नहीं करूंगीं….आप जैसे लोगों के साथ मुझे रहना ही नहीं चाहिये……’’ नीलिमा के चेहरा गुस्से से लाल हो चुका था ।
नीलिमा अस्पताल वापिस आ गई थी । वह अपने कमरे की कुर्सी पर बैठते ही फफक फफक कर रोने लगी । उसे उन लोगों से ऐसे व्यवहार की कतई उम्मीद नहीं थीं । वह तो इस शहर की है नहीं फिर भी यहां के लोगों का इलाज दिन-रात एक करके कर रही है उसके बदले में उसके साथ इस तरह बा बर्ताव किया गया । अरे कोरोना की चिन्ता तो मुझे भी है मैं भी जानती हूॅ कि कोरोना कैसे फैलता है फिर भी मैं बगैर डरे लोगों का इलाज कर रही हॅू कि नहीं….ओह…..उन लोगों ने यह तक नहीं सोचा कि मैं आधी रात को कहां जाउंगीं महिला हंू……चार दिन से काम कर रही हूॅ……..। वह बहुत देर तक रोती । उसका मन हुआ कि वह अपनी माॅ को फोन लगाये पर माॅ उससे ज्यादा परेशान हो जायेगीं यह सोचकर वह रह गई । माॅ से उसे उन बुजुर्ग महिला का ध्यान आया जो कहती रहती थी ‘‘मैं तो तेरी माॅ हूॅ……’’ पर माॅ ऐसा व्यवहार करती हैं क्या । उसका मन उबाल खाने लगा । उसने कुर्सी से अपना सिर टिका लिया । वैसे भी वह बहुत थकी हुई थी उसे रेस्ट की बहुत आवश्यकता थी । उसकी आंखों से आंसू अभी भी बह रहे थे । अपनी कुर्सी पर बैठे बैठे ही उसकी आंख लग गई थी ।
उसे नहीं मालूम कि उस समय रात को कितने बजे थे पर बाहर हो रहे हो-हल्ला से उसकी छपकी टूट गई । कोई पेशेन्ट आया होगा । उसने फिर अपनी आंख बंद कर लीं । उसकी हिम्मत बिल्कुल नहीं हो रही थी कि वह बाहर जाकर पता करे । वह जानती थी कि यदि वह कमरे से बाहर निकली तो फिर मरीज के इलाज में लग जायेगी । आज तो उसे रेस्ट चाहिये । कुर्सी के सहारे रेस्ट करने का प्रयास कर रही थी । बाहर शोरगुल बढ़ता जा रहा था । कुछ परिचित आवाज भी उसके कानों में पड़ रही थी । वह आवाजों को पहचााने की कोशिश कर रही थी ं ।
‘‘नीलिमा जी को बुलाओ……वो हमारी कालोनी में ही रहती हैं……’’ कोई कह रहा था । उसकी साफ आवाज नीलिमा के कानों तक पहुंच गई थी । एक झटके से नीलिमा खड़ी हो गई । उसके बाहर निकलते ही सारे लोग चुप हो गये । उसने सरसरी निगाहों से वहां उपस्थित लोगों को देखा फिर स्ट्रेचर पर लेटे पेशेन्ट को देखा ‘‘अरे ये तो माॅ जी हैं…….वो ही जिनके मकान में किराये से रही हूॅं….’’ । निखिल अपने कानों में स्टेथोस्कोप लगाये उन्हें चेक कर रहा था । नीलिमा ने फौरन उसके हाथों से स्टेथोस्कोप ले लिया और वह उनकी जांच में लग गई ।
मरीज अभी भी सीरियस ही था । उन्हें वार्ड में भर्ती कर लिया गया था । उनके पलंग के बाजू के पनंग पर लेटी नीलिमा के शरीर से निकलने वाला रक्त मरीज के शरीर में पहुंचता जा रहा था । वैसे तो उनको हार्टअटैक था पर उन्हें ब्लड की भी बहुत जरूरत थी । नीलिमा ने उन्हें ट्रीटमेन्ट दे दिया था पर ब्लड उपलब्ध नहीं हो पा रहा था । नीलिमा ने अपना ब्लड देने का मन बना लिया था । उसका ब्लड ग्रुप उनके ब्लड ग्रुप से मेल खा रहा था । नीलिमा बेड पर आंखें बद किए पड़ी थी । आज का सारा घटनाक्रम फिल्म की तरह उसकी आंखों के सामने चित्रित हो रहा था । वैसे तो उसके मन में इन लोगों के प्रति बहुत गुस्सा भरी थी उन्होने उसके साथ व्यवहार ही ऐसा किया था । अपने ही जन्मदिन पर उसे फूट-फूट कर रोना पड़ा था पर जाने क्यों उन्हें स्ट्रेचर पर पड़ा देख उसका दिल भर आया । थकी होने के बाद भी उसने उनका इलाज खुद ही किया । निखिल उनकी मदद करता रहा । गंभीर अटैक था यदि कुछ देर और हो जाती तो ……पर नीलिमा के हाथों में तो जादू था । उसके हाथों का स्पर्श पाते ही मरीज ने आंखें खोल लीं थीं । पूरी तन्मयता के साथ नीलिमा उनके इलाज में जुटी रही ।
नीलिमा आज वार्ड के दौरे पर नहीं आई थी उसे तो कवल माॅ जी का ही हाल जानना था । माॅजी आंखें बंद किए लेटी थीं । उसने अपना हाथ उनके माथे पर रख दिया । अपने सामने नीलिमा को देख वे रोने लगीं ‘‘बेटी……..’’ ।
‘‘आप बिल्कुल शांत रहें……..अब आप टीक हैं…..कुछ दिन और यहां रहें फिर आपकी छुट्टी कर दूंगीं…’’ । नीलिम के चेहरे पर स्नेह और आत्मीयता के भाव थे । पर बुजुर्ग महिला अभी रो रहीं थीं उनकी आंखों से पश्चाताप के आंसू बह रहे थे ।

कुशलेन्द्र श्रीवास्तव
जिला-नरसिंहपुर म.प्र.

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