पंडित रामादीन अपने परिवार के साथ तीर्थ यात्रा से लौट रहे थे। रास्ते में एक कुआं को देखकर भोजन करने के लिए बैठ गए। प्यास से मारा हुआ एक गडरिया आया और उसने जैसे ही बाल्टी को पानी के लिए हाथ लगाया, पंडित जी बिगड़ गये। गुस्सा करते हुए बोले मेरा तो धर्म ही बिगाड़ दिया और पानी ढोलकर बाल्टी को साफकर फिर से ताजा पानी कुएं से निकाला। वह बेचारा प्यासा ही चला गया। भोजन के पश्चात पंडित जी पानी खींचने के लिए तैयार हुए अचानक पैर फिसल गया वे कुएं में गिर गए।
यह देख कर उनकी पत्नी और बच्चे जोर जोर से रोने चिल्लाने लगे। आवाज सुनकर वही गडरिया दौड़ा दौड़ा आया। तब उसकी पत्नी बिलखते हुए पैर पकड़ कर बोली — भैया मेरे सिंदूर की रक्षा करो। इन्हें कुये से निकालो। उसने तत्काल अपनी पगड़ी उतारी और एक छोर कुआं में फेंककर पकड़ने के लिए कहा। पंडित ने पगड़ी को पकड़ा और गडरिया ने धीरे-धीरे ऊपर की ओर खींच कर निकाल दिया। बाहर निकालते ही पंडित जी की सांस फूलने लगी, वे घबरा कर बेहोंश हो गए। ऐसी स्थिति में ग्वाला ने उनको उल्टा लिटाया और पेट का पानी निकाला । तत्पश्चात अपने मुंह से उनके मुंह में ऑक्सीजन देकर अपना मानव धर्म निभाया।
डॉ दशरथ मसानिया
आगर मालवा म प्र