
जीवन की आपाधापी में,
हम कुछ ऐसे व्यस्त हुए।
फिकर रही ना स्वास्थ्य की,
हम कुछ ऐसे मस्त हुए।
क्या है अच्छा ,क्या है बुरा,
इसकी परख ना हमने की।
बांधकर पट्टी आंखों पर,
भेड़ चाल है हमने चली।
सारे एशो आराम की खातिर,
खूब कमाई हमने की।
तन तो अपना खूब सजाया,
मन की परवाह ना हमने की।
एक पल आया जीवन में ऐसा,
दिल दिमाग के रोगी हो गए हम।
डिप्रेशन ने आकर जकड़ा हमको,
कुछ पागल से हो गए हम।
दुनियादारी तनिक ना भाए,
जब हम मानसिक रोगी हो जाएं।
धन दौलत कुछ काम ना आए,
अजीब सी उलझन में खो जाएं।
अस्पतालों के हम चक्कर लगाएं,
डॉक्टरों को हम फीस लुटाएं।
दवाइयों के साइडइफेक्ट उठाएं,
फिर भी स्वस्थ ना हम हो पाएं।
निर्मल रखें तन मन अपना,
कुविचार ना मन में लाएं,
झूठ ,कपटता, स्वार्थ,अहम।
सदा स्वयं से दूर भगाएं,
बांटें सुख दुःख अपनों संग,
अच्छे अच्छे मित्र बनाएं।
दुःख ,दर्द मिटाकर अपने सारे,
चिंताओं की चिता जलाएं।
ध्यान, योग ,अध्यात्म अपनाकर,
जीवन में सुख शांति पाएं।
गंभीर मानसिक बीमारियों से,
जन जन को जागरूक बनाएं।
रचना
सपना( स०अ०)
जनपद – औरैया