अपनी -अपनी नियति

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  " मुझे देख कर मुस्कुरा क्यों रहे हो पिद्दूराम ?क्या नाम है तुम्हारा ?"

“आज ।”तुम इतने बेडौल और मोटे हो ,देखकर हंसी नहीं आएगी क्या ?” वर्तमान ने इठलाते हुए कहा।

वह बिना सुने आगे बोला “और आपका ?”

उसके भोलेपन से पूछे गए प्रश्न पर बह ठहाका मारकर हंस पड़ा।

” मुझे सब जानते हैं । एक तू ही नहीं जानता शायद। मैं इतिहास हूं ,माज़ी हूं ,हिस्ट्री हूं ,तारीख हूं ,तेरी जो भाषा हो उसमें समझ ले ।”

“ओ हो । तभी आप मुझ जैसी नाचीज को रोज निगलते रहते हो।”

वर्तमान की बात अनसुनी कर अतीत आगे उसे समझाने के लिहाज से कहने लगा ” तुम अभी छोटे और अनुभव में कम हो । कल तुम्हें भी मेरा नाम मिलने वाला है ।इसलिए तुम्हें भी यह राज़ जान लेना चाहिए । “

“कौन सा ?”

“सुनाता हूं ।इंसानी खोपड़ियों की तीन प्रका की किस्में होती है। एक शैतान खोपड़ियांं, जो सच्ची घटनाओं को झूठ का जामा पहनाकर मेरे सीने में दफन कर देती हैं। दूसरे प्रकार की खोपड़ियां, जो बरसों- बरसों से जमी मेरे अंंदर की चट्टानों को तोड़कर सच को बाहर निकालततीं हैं और तीसरे प्रकार की खोपड़ियां मासूम होती हैं, आम इंसान ,जो पहली किस्म वाली खैपड़ियों के बताए अनुसार झूठे ‘सच को मान लेती हैं और दूसरी किस्मवाली खोपड़ियों द्वारा किए गए शोध कार्यों के पश्चात निकले सच को देख सुनकर विस्मय अभिव्यक्त करतीं हैं ।”

अतीत से यह राज़ जानकर वर्तमान सोचने लगा कि मेरी उम्र मात्र 24 घंटे और अतीत की हजारों हजारों वर्षों की। जब शैतानी खोपड़ियांं अपना
वजूद जिंदा रखने के लिए बाकी दोनों किस्मों वाली खोपढ़ियों का विश्वास अपनी धूर्तता से जीत लेती हैं ,तो हम क्या चीज हैं,?”

एक लंबी सांस लेते हुए वह कह उठता है …”अपनी- अपनी नियति।”

डॉ..चंद्रा सायता
इंदौर(मध्यप्रदेश)

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राष्ट्र

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