
कर लो सुध कुदरत की आज,
की है हमने जिससे छेड़छाड़।
करके छिद्र ओजोन परत में,
क्यों रहे स्वार्थ के झंडे गाड़।
अपनी धरा के सुरक्षा कवच को,
हम सब मिलकर तोड़ रहे।
बो कर कांटे राहों में अपनी,
फूलों की बाट जोह रहे ।
अपने आराम कि खातिर हमने,
अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है।
अपने स्वार्थ सिद्धि की खातिर ,
बरबादी का कृत्य अब भी जारी है।
पराबैंगनी किरणें सूर्य की ,
हम सबके लिए घातक हैं।
प्रकृति द्वारा रचित अनुपम,
ओजोन ही हमारी रक्षक है।
त्वचा ,नेत्र और कैंसर जैसी,
नित फैल रही महामारी हैं।
संभल जाओ अब नादानों,
अब जान पर बनी हमारी है।
ओजोन बिना मत कर कल्पना,
वसुंधरा पर जीवन की।
हो जाएगा विनाश धरा पर,
यदि की हमने अपनी मनमानी।
अंधाधुंध वनों की कटाई,
और वाहनों का दूषित धुआं ।
अपनी लालसाओं में अंधे हम,
खुद खोद रहे मौत का कुआं।
दे रही चेतावनी प्रकृति ,
सुनों पृथ्वीलोक के प्राणी,
बहुत हो चुका तेरा नाटक,
बन्द करो अपनी मनमानी।
ओजोन बिना वसुधा कैसी,
वसुधा बिन जीवन कैसा।
जरा सोच कर देखो प्राणी,
होगा सृष्टि का भविष्य कैसा।
आओ प्राचीन परम्परा अपनाएं,
धरा को हरा भरा बनाएं।
प्रौद्योगिकी पर कस कर सिकंजा,
ओजोन सुरक्षा कवच बचाएं।
रचना-
सपना (स ०अ०)
औरैया