युवा सामर्थ्य को मिले मंच

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पिछले २ दशकों में इस देश में बहुत कुछ बदला है। आर्थिक मोर्चे पर बदलाव एवं पाश्चात्य देशों की तर्ज़ पर छवि संस्कृति तथा विकास की बयार भारत में भी द्रुतगति से बह रही है। इस नए चलन और परिपाटी से हमारा मध्यमवर्गीय युवा मन भी प्रभावित हुआ है। उसकी इच्छाओं,अपेक्षाओं और आकांक्षाओं को भी पंख लगे हैं। आज बड़ी संख्या में हमारी युवा पीढ़ी दूसरे राज्यों और विदेशों में पढ़ने और रोजगार हेतु जा रही है। बड़े शहरों की चकाचौंध वाली जीवन शैली और `मॉल कल्चर` उसे लुभाती है,दूसरी तरफ़

मध्यमवर्गीय परिवारों के अभिभावकों के समक्ष अपनी संतानों को पढ़ा-लिखाकर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करने की चुनौती है तो युवा पीढ़ी भी उच्च शिक्षा ग्रहण कर लुभावने वेतन के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रही है। कई को कामयाबी

हासिल हो रही है,तो अधिकांश युवाओं के सपनों के पूरा होने की राह में कई बाधाएं तथा रुकावटें हैं। सच में आज का युवा अपनी महत्वाकाँक्षाओं और अपनों की अपेक्षाओं के बोझ तले कराह रहा है। समय रहते मंजिल न मिलने के चलते इनमें कुंठा और हताशा बढ़ रही है? कौन इनकी भावनाओं को समझेगा,और उन पर मरहम लगाएगाl

हमारा युवा आज की शिक्षा व्यवस्था की दशा और दुर्दशा को लेकर चिंतित और परेशान है,क्योंकि एक राष्ट्र के भीतर अनेक प्रकार की शिक्षा प्रणालियां प्रचलन में हैं। एक तरफ विद्यालयों और महाविद्यालयों में अध्यापकों की कमी है,तो वहीं युवा उपाधि हाथ में होने के बावजूद बेरोजगार घूम रहा है। हमारा निजी और सरकारी तंत्र युवाओं को उनकी योग्यता के विपरीत बेहद कम मानदेय देकर उनकी योग्यता का शोषण कर रहा हैl दूसरी तरफ हमारा देश आज भी ऐसी अनेक समस्याओं में उलझा हुआ है,कि आजादी के ७० वर्ष बाद भी हमें मूलभूत बुनियादी सुविधाओं की पूर्णता की बाट जोहनी पड़ रही है।

भारत में युवाओं की संख्या विश्व के अन्य देशों के मुकाबले में ज्यादा है। यहां की ६५ फीसदी आबादी ३५ वर्ष से कम है,अर्थात् युवा है। इसी को ध्यान में रखकर भारत सरकार ने वर्ष २०१४ में ‘राष्ट्रीय युवा नीति’ के

अंतर्गत, ‘युवाओं की क्षमताओं को पहचानना और उसके अनुसार उन्हें अवसर प्रदान कर उन्हें सशक्त बनाना और इसके माध्यम से विश्वभर में भारत को उसका सही स्थान

दिलाना है’ की परिकल्पना की थीl वर्तमान में भारत में १२ करोड़ से ज्यादा युवा बेरोजगार हैं। बेरोज़गारों में २५ प्रतिशत २० से २४ साल के आयुवर्ग के हैं,तो २५ से २९ वर्ष की उम्र वाले युवाओं की तादात १७ फीसदी है। आज जिस बड़े अनुपात में युवा शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं,उस अनुपात में निजी एवं सरकारी क्षेत्रों में नौकरियां नहीं बढ़ रही हैं। इन हालातों में हताश-बेरोजगार युवाओं के अपराध एवं नशाखोरी के मार्ग पर चल पड़ने की आशंका भी रहती

है,इस पर भी विचार करने की जरुरत है।

‘विजन इंडिया फाउंडेशन’ की टीम ने देश के प्रतिष्ठित व्यावसायिक एवं सामान्य शिक्षण संस्थाओं में अध्ययनरत ३५ हजार से ज्यादा युवाओं के बीच

सर्वेक्षण कर उनके मन को जानने,पढ़ने की कोशिश की तो पता चला कि युवाओं में अपने सुरक्षित भविष्य को लेकर झटपटाहट है,तो उनमें अपनेपन के अभाव का दर्द भी पल रहा है। आज अभिभावक भी अपने बच्चों के जल्दी से जल्दी रोजगार पर लग जाने की उत्कंठा एवं अभिलाषा में बच्चों की भावनात्मक इच्छाओं को समझ नहीं पा रहे हैं ? यदि आज आप युवाओं के मन को टटोलें,तो उनका दर्द और व्यथा खुलकर सामने आ जाती है। उनका मानना है कि आजकल नेताओं,बड़े अधिकारियों,उद्योगपतियों,अपराधियों, तथाकथित बाबाओं-धर्मगुरुओं और ठेकेदारों के कथित गठजोड़ से राष्ट्रीय हितों को नुकसान पहुंच रहा है। राजनीतिक दलों के नेता अपना हित साधने के लिए आम जनता को धर्म,जाति और आरक्षण के नाम पर बाँट रहे हैं। पिछले दिनों पुणे में ७वीं भारतीय छात्र संसद को सम्बोधित करते हुए गुजरात से अभियांत्रिकी के छात्र अक्षत गांधी ने समर्थ पटेल समुदाय द्वारा अपने लिए आरक्षण की मांग पर कटाक्ष करते हुए कहा कि,जिस देश में लोगों में खुद को पिछड़ा हुआ साबित करने की होड़ लगी हुई हो,वो देश भला क्या तरक्की करेगा ?

स्वामी विवेकानंद ने एक शताब्दी पूर्व कहा था कि, `रफ्तार और भागदौड़ भरी जिंदगी में आज पारिवारिक तथा रिश्तों का मूल्यबोध का लोप होता जा रहा है। `भारत` से `इंडिया` के रूपांतरण में स्वदेशी अस्मिता एवं सम्प्रभुता फीकी पड़ गई है और विदेशी ताकतों का छद्म जाल यहां बेरोजगारी तथा आर्थिक मंदी के रूप में अर्थव्यवस्था पर बिछ रहा है,जिसके फलस्वरूप युवाओं का एक वर्ग आज हतोत्साहित और देश के समग्र विकास से अपने-आपको वंचित महसूस करता हैl` उनका यह कथन आज भी समाचीन,प्रासंगिक एवं सामयिक है।

स्वामी विवेकानंद ने युवाओं का आहवान करते हुए कठोपनिषद् के एक मंत्र का उल्लेख किया था-‘उतिष्ठत, जाग्रत प्राप्य वरानिबोधत`…अर्थात् उठो,जागो और तब तक मत रुको,जब तक कि अपने लक्ष्य पर न पहुंच जाओ।` यह वक्त का तकाजा है कि हमारे नीति नियंता और निर्माता युवा मन को टटोलें,उनके विचारों को सुनें और राष्ट्र निर्माण में उनकी सशक्त भागीदारी की व्यवस्था को सुनिश्चित बनाएं। आज की युवा पीढ़ी जाति,धर्म,आरक्षण और क्षेत्रवाद एवं वंशवाद की राजनीति से उपर उठकर बेरोजगारी,भ्रष्टाचार विरोधी पारदर्शी वविकासोन्मुखी मुद्दों पर विश्वास करती है। हमारा युवा वर्तमान तंत्र में बदलाव का इच्छुक है। कमजोर को सामर्थ्यशाली बनाकर ही हम समाज में समरसता,समानता एवं बंधुत्व की भावना पैदा कर सकते हैं। आवश्यकता है कि,दूरगामी सोच वाले युवाओं को राजनीति में लाकर उन्हें संसद एवं विधानसभाओं में प्रतिनिधित्व दिया जाए,ताकि नवीन एवं समृद्ध भारत के निर्माण में उनकी प्रतिभा एवं सामर्थ्य का समुचित उपयोग हो सके। एक समर्थ,सबल,सक्षम,सशक्त,स्वाभिमानी और शक्तिशाली भारत के निर्माण के लिए हमें अपनी स्वार्थी प्रवृति से ऊपर उठने की भी जरुरत है।

#अनुज कुमार आचार्य 
परिचय : अनुज कुमार आचार्य की जन्मतिथि २५ जुलाई १९६४ और जन्मस्थान-बैजनाथ है। वर्तमान में आप हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले की तहसील बैजनाथ के गाँव-नागण में रहते हैं। शहर-पपरोला से ताल्लुक रखने वाले श्री आचार्य की शिक्षा एम.ए.(हिन्दी )बी.एड. और पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा है। बतौर कार्यक्षेत्र आप भूतपूर्व सैनिक हैं और स्वतंत्र लेखन-अध्यापन करते हैं। सामाजिक क्षेत्र की बात की जाए तो स्वच्छता-जागरुकता अभियान और युवाओं का मार्गदर्शन करते हैं। कई समाचार पत्रों में सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दों पर नियमित लेखन में सक्रिय हैं। सम्मान के रूप में आपको थल सेनाध्यक्ष से प्रशंसा-पत्र और श्रेष्ठ लेखन हेतु प्रतिष्ठित हिमाचल केसरी अवार्ड हासिल हैl आपकी नजर में लेखन का उद्देश्य-सामाजिक विकृतियों,भ्रष्टाचार तथा असमानता के विरुध्द जागरूकता पैदा करना है। 

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  1. We are always feel proud that Mr Anuj Acharya is doing well in journalism and always putting the issues which are related to our day to day problems in effective and constructive manner.

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आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।