पुकारती है मां भारती
ढूंढती है आजादी
गली-गली ,शहर-शहर
पुकारती है मां भारती
बेड़ियों में धर्म की
जकड़ी मां भारती
सिसक रही है एकता को
फिर से मां भारती
ढूंढती है आजादी
कर्ज से लगी हुई
भुखमरी ,गरीबी से
पेट भरने को
तरस रही है
मां भारती
ढूंढती है आजादी
न्याय की चौखट पर
अंधे कानून से
न्याय पाने को तरस रही है
फिर से मां भारती
ढूंढती है आजादी
लोकतंत्र के विधान में
अपने अधिकारों के लिए
सत्ताधारीओं से
रहम की भीख
मांगती है मां भारती
ढूंढती है आजादी
राष्ट्र की सुरक्षा की खातिर
अपने ही लालों
के खून से
होली खेलती
माँ भारती
ढूंढती है आजादी।
#स्मिता जैन
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