भारत के आर्थिक मामलों में अग्रणीय रहे प्रणव मुखर्जी

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समन्वय और समरसता की मिसाल रहे भारत के 13वें राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी अपने जीवन के 84 वर्ष पूरे कर 31 अगस्त को अनन्त की यात्रा पर निकल गये। सन 2012 से 2018 तक इस पद पर रहे प्रणब दा भारत के राष्ट्रपति बनने से पहले भारत सरकार के वित्त मंत्री भी रहे । भारत के आर्थिक मामलों, संसदीय कार्य, बुनियादी सुविधाएँ व सुरक्षा समिति में वे वरिष्ठ नेता रहे रहे। उन्होंने विश्व व्यापार संघठन व भारतीय विशिष्ठ पहचान प्राधिकरण क्षेत्र में भी कार्य किया था, जिसका अनुभव उन्हें भारत की राजनैतिक सफ़र में बहुत काम आया। गत वर्ष 26 जनवरी को उन्हें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा भारत रत्न से सम्मानित भी किया गया था।

प्रणब मुखर्जी का जन्म 11 दिसम्बर 1935 को बंगाल के वीरभूम जिले के मिराती गांव में एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बाइस वर्ष की आयु में 13 जुलाई 1957 को शुभ्रा मुखर्जी के उनका विवाह हुआ। इनके पिता कामदा किंकर मुखर्जी स्वतंत्रता संग्रामी थे और 1952-64 तक बंगाल विधानसभा के सदस्य भी रहे। घर में राजनैतिक माहौल होने की वजह से बचपन से ही प्रणब दा का मन राजनीति में आने का था। प्रणब दा ने शुरूआती पढ़ाई तो अपने गृहनगर के स्थानीय स्कूल में ही पूरी की, लेकिन आगे की पढ़ाई उन्होंने सूरी (वीरभूम) के सूरी विद्यासागर कॉलेज से राजनीति शास्त्र एवं इतिहास में स्नातक करते हुए पूरी की थी। फिर उन्होंने कानून की पढाई के लिए कलकत्ता यूनिवर्सिटी में दाखिला ले लिया। अपने करियर की शुरुवात प्रणब दा ने पोस्ट एंड टेलेग्राफ़ ऑफिस से की थी जहां वे एक क्लर्क थे। सन 1963 में विद्यानगर कॉलेज में वे राजनीती शास्त्र के प्रोफेसर बन गए और साथ ही साथ बंगाली अखबार देशेर डाक में पत्रकार के रूप में कार्य करने लगे।

प्रणब मुखर्जी के राजनैतिक सफ़र की शुरुवात 1969 में हुई। जब वे कांग्रेस का टिकट प्राप्त कर राज्यसभा के सदस्य बन गए, 4 बार वे इस पद के लिए चयनित हुए। वे थोड़े ही समय में इंदिरा गांधी के चहेते बन गए थे। सन 1973 में इंदिरा जी के कार्यकाल के दौरान वे औद्योगिक विकास मंत्रालय में उप-मंत्री बन गए. सन 1975-77 में आपातकालीन स्थिति के दौरान प्रणब मुखर्जी पर बहुत से आरोप भी लगाये गए। लेकिन इंदिरा गांधी के सत्ता आने के बाद उन्हें क्लीन चिट मिल गया. इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान प्रणब जी सन 1982से 1984 तक वित्त मंत्री रहे थे।

इंदिरा गांधी की हत्या के पश्चात् राजीव गाँधी से प्रणब जी के संबंध कुछ ठीक नहीं रहे फिर भी राजीव गाँधी ने अपने कैबिनेट मंत्रालय में प्रणब दा को वित्त मंत्री बनाया था। लेकिन राजीव गाँधी से मतभेद के चलते प्रणब दा ने अपनी एक अलग “राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस” पार्टी गठित कर दी थी। बाद में वे एक बार फिर कांग्रेस से जुड़ गए। कुछ लोग इसके पीछे की वजह ये बोलते थे कि इंदिरा गाँधी की मौत के बाद प्रणब जी खुद को प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में देखते थे, लेकिन उनकी मौत के बाद राजीव गाँधी से सब उम्मीद करने लगे। पी. वी. नरसिम्हाराव का प्रणब दा के राजनैतिक जीवन को आगे बढ़ाने में बहुत बड़ा योगदान है। नरसिम्हाराव जब प्रधानमंत्री थे, तब उन्होंने प्रणब दा को योजना आयोग का प्रमुख बना दिया। थोड़े समय बाद उन्हें केंद्रीय कैबिनेट मंत्री और विदेश मंत्रालय का कार्य भी सौंपा गया।

सन 1999 से 2012 तक प्रणब मुखर्जी जी केंद्रीय चुनाव आयोग के अध्यक्ष रहे। सन 1997 में प्रणब मुखर्जीजी को भारतीय संसद ग्रुप द्वारा उत्कृष्ट सांसद का ख़िताब दिया गया। सोनिया गाँधी को कांग्रेस प्रमुख बनाने में प्रणब दा का बहुत बड़ा हाथ है। राजनीति के सारे दाव पेंच सोनिया गांधी को प्रणब दा ने ही सिखाये थे। प्रणब जी के परामर्श के बिना सोनिया जी कुछ नहीं करती थी। ऐसा माना जाता है।

सन 2004 में प्रणब दा ने जंगीपुर से चुनाव लड़ा और जीत हासिल कर लोकसभा सदस्य बन गए। उन्होंने रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री, वित्त मंत्री और लोकसभा में कांग्रेस पार्टी के नेता के रूप में सराहनीय काम किये। इस दौरान मनमोहन सिंहजी को प्रधानमंत्री बनाया गया. कहते है अगर उस समय प्रणब मुखर्जी जी को प्रधानमंत्री बनाया जाता तो आज देश विकास के क्षेत्र में बहुत आगे होता।

जुलाई सन 2012 में प्रणब मुखर्जीजी पी.ए. संगमा को हराकर राष्ट्रपति पद पर आसीन हुए। ये पहले बंगाली थे जो राष्ट्रपति बने थे। प्रणब दा का राष्ट्रपति बनने तक का सफ़र आसान नहीं रहा, उन्हें काफी उतार चढाव का सामना करना पड़ा। प्रणब दा ने अपने जीवन के 40 साल भारतीय राजनीति को दिए, जो एक महत्वपूर्ण योगदान है। उम्र के इस पड़ाव में आकर जहाँ लोग हार मान जाते है और आपा खो बैठते है, वही प्रणब जी ने संयम, धैर्य से अपने राजनैतिक जीवन को एक दिशा प्रदान की थी।

प्रणब दा को पढ़ने, लिखने, बागवानी और संगीत का बहुत शौक है. इनके द्वारा लिखी गई किताबें मिडटर्म पोल(1969), इमर्जिंग डाइमेंशन्स ऑफ इंडियन इकोनॉमी(1984), ऑफ द ट्रैक(1987), सागा ऑफ स्ट्रगल एंड सैक्रिफाइस(1992) चैलेंज बिफोर दी नेशन(1992), द ड्रामेटिक डिकेड : द डेज ऑफ़ इंदिरा गाँधी इयर्स(2014) प्रमुख है। सन 2019 में प्रणब दा को भारत रत्न सम्मान से नवाजा गया। इसके पहले 2008 में पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया जा चुका था। 2010 में एक रिसर्च के बाद ‘फाइनेंस मिनिस्टर ऑफ़ दी इयर फॉर एशिया’ के लिए अवार्ड दिया गया। 2011 में वोल्वरहैम्टन विश्वविद्यालय द्वारा प्रणब दा को डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया। प्रणब दा विदेश में भी उपलब्धि प्राप्त करने वाले व्यक्ति बने थे। 2013 में बांग्लादेश सरकार की ओर से वहां के दूसरे सबसे बड़े अवार्ड ‘बांग्लादेश लिबरेशन वॉर ओनर’ से सम्मानित किया गया था। 2016 में आइवरी कोस्ट की ओर से ‘ग्रैंड क्रॉस ऑफ नेशनल ऑर्डर ऑफ द आइवरी कोस्ट’ अवार्ड दिया गया था। 1984 में विश्व के सबसे अच्छे वित्त मंत्री के रूप में उन्हें उपलब्धी मिली थी। इसी 1997 में सबसे अच्छे सांसद के रूप में भी उन्हें सम्मानित किया गया।

जब प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति बनने के पश्चात कई दया याचिकाओं प्राप्त की जिनमे से उन्होंने 7 याचिकाओं को पूरी तरह से रद्द कर दिया। इसमें मुंबई हमले का आतंकवादी कसाब की दया याचिका भी शामिल थी। जब वे राष्ट्रपति बने तब पूर्व कम्युनिस्ट लीडर सोमनाथ चटर्जी जी ने मुखर्जी दा को भारत के स्टेट्समैन का नाम दिया था। प्रणब मुखर्जी जी ने भारत की राजनीति में अपना एक अहम योगदान दिया है, उनके कार्यों को कभी भी भूलाया नहीं जा सकता है। देश के लिए समर्पित रहे राजनेताओं की अग्रपंक्ति में उनका नाम और काम रहेंगे। विनम्र श्रद्धंजलि।

संदीप सृजन
उज्जैन

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