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सवैया (मत्तगयंद)
7 भगण अंत में 2 गुरु
चार सखी मिल पूंछ रही
बतला कछु प्रीतम रासन रातें।
एक सखी लजके हंस बोलति
पांय परों मत पूंछहि बातें।
हाय दई अंखियां मुचि जाय
हिया हरषाय नशा चढ़ जाते।
दूसरि मोहित मूरति सी
चुप होय हिया हुलसे बल खाते।।1
मास बसंत मनोहर सूरत
हीरक हीय मिलावन आई।
सुंदर सांवरि जोह रही
अंखियां सजना मिलबे तरसाई।
मंद हंसी मन प्रीत बसी
पिय को मद भीतर देत दिखाई।
रात भई मन मोर नचावत
नैन लजावत बांह समाई।।2
डाॅ दशरथ मसानिया
आगर मालवा
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