
मृदु वाणी कोयल की
भ्रमित जैसे सबको करती है ,
बोली पर मुग्ध चराचर सारा है
इस सर्वस्व सर्वश्रेष्ठ कृति मे
कुछ गलत और सही नहीं
जिसमें मिले सफलता
हैं पथ वह सभी सही
धुल जाते सर्व पाप कर्म फिर
जब तुम्हें सफलता मिलती है
गिरो भिड़ो संभलो जग तुम्हारा है
भाभी को भार्या बनाया
भाई को किया दण्डित
जग ने उसको भी करा
कह विक्रमादित्य महिमामंडित
उठो चलो और करो
अंतर्ध्वनि जो कहती है
जग का क्या यह स्वयं नकारा है
भ्रात बलि की आहुति से
हो सिंहासन जिसने पाया
बड़े-बड़े अहिंसकों ने उनको
देखो अपना आदर्श बनाया
आकार दो अब उन्हें
लहर जो मन में उठती है
जग को तेरा हंसना भी नही गंवारा है
आशुतोष तीरथ
गोण्डा