फिर भी हम जगतगुरू

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आज जनतंत्र-धनतंत्र हो गया ,
सुजनतंत्र- स्वजनतंत्र हो गया।
लोकतंत्र-थोकतंत्र बन गया ,
रामराज्य अब दामराज्य हो गया।
यह प्रजातंत्र ,
चन्द लोगों के लिए मजातंत्र है ,
बाकी लोगों के लिए सजातंत्र।
सस्ती के साथ मस्ती चली गयी,
और लाइफ को फाइल खा गई।
मूल्यवृध्दि, शुल्कवृध्दि, करवृध्दि से
कष्टवृध्दि हो रहा है ।
अफसर अजगर के प्रतिरूप हो गए,
एक बार फुफकारकर,
सीधे निगल जाते हैं।
हड़ताल अब हर ताल हो गया ,
न जाने कब ताण्डव शुरू हो जाय।
भरपेट भोजन प्लेटभर हो गया,
गोरस का स्थान कोरस ने ले लिया।

प्रेम सट्टा बाजार का सौदा हो गया,
विद्युत स्विच की भाँति,
जब चाहो ऑन करो,
जब चाहो ऑफ
वह चरमकोटि से चर्मकोटि पर आ गया।

यहाँ भाषण की अधिकता है,
राशन की न्यूनता।
महादेव क्षीरसागर में गोते लगा रहे हैं,
कुपोषित बच्चे यमराज को गले लगा रहे हैं।
क्षुधामृत्यु-वृथामृत्यु हो गई।
फिर भी,
हम जगतगुरू हैं,
महान हैं,प्रगति पर हैं।

किसमत्ती चौरसिया ‘स्नेहा’

परिचय –
सम्प्रति इलाहाबाद विश्वविद्यालय में डॉ. विजय कुमार रविदास के शोध निर्देशन में अब्दुल बिस्मिलाह के कथा साहित्य पर शोधकार्य में संलग्न हैं। जन्मतिथि १९जुलाई १९९७ और जन्मस्थान ग्राम कनेरी फूलपुर आजमगढ़ उत्तर प्रदेश है। पिता जी का नाम रामदवर चौरसिया और माता का नाम मोहनी देवी है। आजमगढ़ में गांव से ही स्नातक तक की शिक्षा प्राप्त किया है। स्नातकोत्तर की शिक्षा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से वर्ष २०१७-१९ में प्राप्त किया।इसके अतिरिक्त एनएसएस, कम्यूटर डिप्लोमा CCC और DCA भी किया है। पढ़ाई के साथ- साथ कविताएं एवं गीत लिखने का शौक है। कुछ कविताएं राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय समाचार पत्र- पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हुई हैं।

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