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बेटी हर घर
का है सपना,
बेटी के बिन
लगता है खाली
हर अंगना।
बेटी के कई रूप हैं,
सुन्दर स्वरूप हैं..
माँ, बहिन, बेटी
अनेक रूप में होती है,
आज जो पत्नी है..
बचपन की बेटी है
अब पत्नी है,
बच्चों की माँ है..
माँ तो बस माँ है।
माँ जब अपनी
बेटी को देखती है,
अपने ही बचपन
को याद कर देखती है..
सुन्दर बचपन,
सुहाना वो बचपन..
सपना-सा लगता है,
बीता वो बचपन
बेटी की यादों में,
बचपन की यादों में..
सपना-सा दिखती है
कष्टों में बीता जो
बेटी का बचपन।
तड़पता है दिल,
माँ का है अपनापन..
माँ में है बेटी,
बेटी में माँ है..
रिश्ता ये ऐसा है
जैसे लगता हो,
जमी,आसमाँ है।
बेटी को लगता है,
बचपन भला है
माँ तो समझती है,
अच्छा ही करती है
बस बेटी का भला है..
माँ और बेटी का
रिश्ता ही ऐसा है।
माँ तो समझती है,
आगे क्या होना है..
बेटी का भी है कुछ
अपना ही सपना है।
#अनन्तराम चौबे
परिचय : अनन्तराम चौबे मध्यप्रदेश के जबलपुर में रहते हैं। इस कविता को इन्होंने अपनी माँ के दुनिया से जाने के दो दिन पहले लिखा था।लेखन के क्षेत्र में आपका नाम सक्रिय और पहचान का मोहताज नहीं है। इनकी रचनाएँ समाचार पत्रों में प्रकाशित होती रहती हैं।साथ ही मंचों से भी कविताएँ पढ़ते हैं।श्री चौबे का साहित्य सफरनामा देखें तो,1952 में जन्मे हैं।बड़ी देवरी कला(सागर, म. प्र.) से रेलवे सुरक्षा बल (जबलपुर) और यहाँ से फरवरी 2012 मे आपने लेखन क्षेत्र में प्रवेश किया है।लेखन में अब तक हास्य व्यंग्य, कविता, कहानी, उपन्यास के साथ ही बुन्देली कविता-गीत भी लिखे हैं। दैनिक अखबारों-पत्रिकाओं में भी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। काव्य संग्रह ‘मौसम के रंग’ प्रकाशित हो चुका है तो,दो काव्य संग्रह शीघ्र ही प्रकाशित होंगे। जबलपुर विश्वविद्यालय ने भीआपको सम्मानित किया है।
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Wed May 10 , 2017
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