
क्या अभी भी सोचते हो मैं लिखूँ शृंगार केवल
वक़्त है क्या ये अभी भी जो लिखूँ मैं प्यार केवल
आज के हालात मुझको कर रहे मजबूर इतना
छोड़ कर करुणा दया बस मैं लिखूँ अंगार केवल
हर जगह क्यों लग रही हैं जिस्म की अब बोलियाँ यूँ
लुट रहीं हैं आज भी क्यों दुलहिनों की डोलियाँ यूँ
अब बचा सकता नहीं जब बागबां भी फूल को तो
फायदा क्या फूल का अब तुम उगाओ खार केवल
अब भला किससे करें हम न्याय की भी आस बोलो
न्याय के ही देवता जब तोड़ दें विश्वास बोलो
नाचते हैं जीतने पर ज़ुर्म, धोखा, झूठ ही अब
और हिस्से में मिली है सत्य को तो हार केवल
इक तरफ तो थाल भर भर के सजे पकवान देखो
दूर रोटी से खड़े उस ओर के इंसान देखो
दो निवाले ही मयस्सर हो गए तो भी बहुत है
सेठ साहूकार के ही हैं यहाँ त्योहार केवल
ऋषभ जैन ‘प्रखर’, इंदौर
परिचय
नाम : ऋषभ जैन
साहित्यिक नाम : ऋषभ जैन ‘प्रखर’
पिता का नाम: श्री जीवन लाल जैन
माता का नाम : पुष्पा जैन
पता : इंदौर (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : बी सी ए
व्यवसाय : सॉफ्टवेयर डेवलपर
सहित्यिक: राष्ट्रीय सचिव कुंभ कलश साहित्य सेवा संस्थान (रजि.) प्रयागराज उ .प्र.
काव्य विधा: दोहा, मुक्तक, ग़ज़ल,गीत
काव्य संग्रह : साझा संकलन इक्कीसवीं सदी के चुनिंदा दोहे