सिर दर्द बना ड्रैगन।

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दुनिया को मौत के मुँह में ढ़केलने वाला राक्षस रूपी ड्रैगन संसार के लिए सबसे बड़ी मुसीबत बन गया है। पूरे विश्व में अपनी ताकत का लोहा मनवाने की होड़ में ड्रैगन वह सब-कुछ कर गुजरने को तैयार है जिससे कि उसको विश्व शक्ति मान लिया जाए। अपने रास्ते मं आने वाली हर एक दीवार को तोड़ने की फिराक में ड्रैगन लगा रहता है। ड्रैगन यह चाहता है कि वह विश्व की महाशक्ति बनकर उभरे, संपूर्ण पृथ्वी पर ड्रैगन का एकक्षत्र राज हो। पूरा संसार ड्रैगन के सामने नत्मष्तक हो जाए बस इसी फिराक में ड्रैगन पूरे संसार में अपनी चाल चलता रहता है।
ड्रैगन के द्वारा फैलाया गया कोरोना का प्रकोप अभी समाप्त भी नहीं हुआ था कि ड्रैगन ने फिर से आँख दिखाना शुरू कर दिया। जब तब ड्रैगन की सेना भारत के क्षेत्र में अवैध रूप से घुस आती हैं और भारतीय सेना को आँख दिखाती है। ऐसा पिछले काफी दिनों से हो रहा है। यदि वर्तमान समय की विश्व की राजनीति को देखते हैं तो नेपाल की भाषा साफ एवं स्पष्ट करती है कि नेपाल किसकी भाषा बोल रहा है। नेपाल के द्वारा प्रयोग किए जा रहे शब्द यह किसके शब्द हैं। ड्रैगन सदैव से ही भारत का दुश्मन रहा है। पड़ोसी देश पाकिस्तान को उकसाने वाला ड्रैगन ही है। अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान का खुलकर साथ देने वाला ड्रैगन ही है। अतः भारत को अब यह समझ लेना चाहिए कि ड्रैगन से मित्रता की उम्मीद रखना छोड़ दें। अभी भारत ने जिनपिंग का जोरदार स्वागत किया परन्तु परिणाम क्या हुए…?
भारत-चीन का विवाद ऐसा विवाद है जोकि कभी न सुलझने वाला नहीं है क्योंकि ड्रैगन भूल कर गलती नहीं कर रहा। अपितु ड्रैगन जानबूझकर योजनाबद्ध रूप से साजिश को अंजाम देता रहता है। यदि हम इतिहास के पन्नों को पलटकर देंखे तो सब कुछ साफ होकर उभरकर सामने आ जाता है। चीन और भारत के बीच विवाद 1962 में हुआ जोकि एक बड़े युद्ध के रूप में परिवर्तित हुआ। हिमालय की सीमा युद्ध के लिए एक बहाना मात्र था। इसके पीछे अन्य मुद्दों की बड़ी भूमिका थी। चीन में 1959 के तिब्बती विद्रोह के बाद जब भारत ने दलाई लामा को शरण दी तो भारत चीन सीमा पर हिंसक घटनाओं की एक श्रृंखला शुरू हो गयी। भारत ने फॉरवर्ड नीति के तहत मैकमोहन रेखा से लगी सीमा पर अपनी सैनिक चौकियाँ रखी जो 1959 में चीनी प्रीमियर झोउ एनलाई के द्वारा घोषित वास्तविक नियंत्रण रेखा के पूर्वी भाग के उत्तर में थी। चीनी सेना ने 20 अक्टूबर 1962 को लद्दाख में और मैकमोहन रेखा के पार एक साथ हमले शुरू किए। चुशूल में रेजांग-ला एवं पूर्व में तवांग पर अवैध कब्ज़ा कर लिया। चीन ने 20 नवम्बर 1962 को युद्ध विराम की घोषणा कर दी और साथ ही विवादित दो क्षेत्रों में से एक से अपनी वापसी की घोषणा भी की। भारत-चीन युद्ध कठोर परिस्थितियों में हुई लड़ाई के लिए उल्लेखनीय है। इस युद्ध में ज्यादातर लड़ाई 4250 मीटर (14,000 फीट) से अधिक ऊंचाई पर लड़ी गयी। इस प्रकार की परिस्थिति ने रसद और अन्य लोजिस्टिक समस्याएँ प्रस्तुत की।
चीन और भारत के बीच एक लंबी सीमा है जो नेपाल और भूटान के द्वारा तीन अनुभागो में फैला हुआ है। यह सीमा हिमालय पर्वतों से लगी हुई है जो बर्मा एवं पश्चिमी पाकिस्तान तक फैली है। इस सीमा पर कई विवादित क्षेत्र हैं। पश्चिमी छोर में अक्साई क्षेत्र है यह क्षेत्र चीनी स्वायत्त क्षेत्र झिंजियांग और तिब्बत (जिसे चीन ने 1965 में एक स्वायत्त क्षेत्र घोषित किया) के बीच स्थित है। पूर्वी सीमा पर बर्मा और भूटान के बीच वर्तमान भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश स्थित है। अक्साई क्षेत्र समुद्र तल से लगभग 5,000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित साल्ट फ्लैट का एक विशाल रेगिस्तान है और अरुणाचल प्रदेश एक पहाड़ी क्षेत्र है जिसकी कई चोटियाँ 7000 मीटर से अधिक ऊँची है। सैन्य सिद्धांत के मुताबिक आम तौर पर एक हमलावर को सफल होने के लिए पैदल सैनिकों के 3:1 के अनुपात की संख्यात्मक श्रेष्ठता की आवश्यकता होती है। पहाड़ी युद्ध में यह अनुपात काफी ज्यादा होना चाहिए क्योंकि इलाके की भौगोलिक रचना दूसरे पक्ष को बचाव में मदद करती है। यदि वर्तमान समय के सियासी समीकरणों पर प्रकाश डाला जाए तो काफी कुछ उभरकर सामने आ जाता है। जोकि विवाद का मुख्य कारण है। भारत व चीन के बीच तिब्बत, राजनीतिक व भौगोलिक तौर पर कैटेलिस्ट का काम करता था। चीन ने 1950 में इसे हटा दिया भारत तिब्बत को मान्यता दे चुका है, लेकिन तिब्बती शरणार्थियों के बहाने चीन इस मसले पर कभी-कभी हरकतें करता रहता है। लद्दाख इलाके में अक्साई सड़क और ऐसी कई सड़कें बनाकर चीन लगातार निर्माण कार्य कर रहा है इसकी वजह से भी तनातनी का माहौल बना रहता है चीन जम्मू-कश्मीर को भी भारत का अंग मानने में आनाकानी करता है, लेकिन पाक के कब्जे वाले कश्मीर को पाकिस्तान का भाग मानने में उसे कोई आपत्ति नहीं है यह भी बवाल की एक बड़ी वजह है। दोनों देशों के बीच करीब 3488 किमी की सीमा पर कोई स्पष्टता नहीं है चीन जान-बूझ कर सीमा विवाद हल नहीं करना चाहता वह सीमा विवाद को समय-समय पर भारत पर दबाव बनाने के लिए उपयोग करता है इस सीमा को लेकर भारत और चीन के जवानों के बीच अक्सर लड़ाई झगड़े होते रहते हैं कई बार सैनिक घायल भी हो जाते हैं।
चीन पूरे अरुणाचल पर अपना दावा बताता है अरुणाचल में एक जल विद्युत परियोजना के लिए एशिया डेवलपमेंट बैंक से लोन लेने का चीन ने जमकर विरोध किया अरुणाचल को विवादित बताने के लिए चीन वहां के निवासियों को नत्थी वीजा देता है ताकि वहां के लोग चीन आ जा सकें कई बार अरुणाचल की सीमा पर भी भारत के जवानों के साथ चीन के जवान अभद्रता करते हैं। ब्रह्मपुत्र नदी को लेकर चीन का रवैया कभी भी अच्छा नहीं रहा है वह इस नदी पर कई बांध बना रहा है उसका पानी वह नहरों के जरिए उत्तरी चीन के इलाकों में ले जाना चाहता है भविष्य में इस मसले के बड़ा विवाद बनने की आशंकाओं को ध्यान में रख भारत इस मसले को द्विपक्षीय बातचीत में उठाता रहा है।
चीन ने पिछले कुछ सालों से हिंद महासागर में अपनी गतिविधियां बढ़ा रहा है पाकिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका और मालदीव के साथ साझेदारी में परियोजनाएं शुरू कर वह भारत को घेरने की रणनीति पर काम कर रहा है इससे भारत के चारों तरफ उसकी पहुंच हो जाएगी। पाक अधिकृत कश्मीर पीओके और गिलगित बलोचिस्तान में चीन कई विकास कार्यों वाली गतिविधियां कर रहा है बांध बना रहा है सड़कें बना रहा है। इन इलाकों में तीन से चार हजार चीनी कार्यरत हैं, जिनमें चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के जवान भी शामिल हैं। दक्षिण चीन सागर में चीन अपना प्रभुत्व कायम करना चाहता है ताकि अपनी ऊर्जा की जरूरतों को पूरा कर सके यहां उसे वियतनाम, जापान और फिलीपींस से चुनौती मिल रही है कुछ साल पहले उसने वियतनाम की दो तेल ब्लॉक परियोजनाओं में शामिल भारतीय कंपनियों को चेतावनी दी थी कि वह साउथ चाइना सी से दूर रहें इसके अलावा इस इलाके में चीन हमेशा मिलिट्री ड्रिल करता रहता है जिसकी वजह से इस इलाके के देशों में हमेशा डर का माहौल बना रहता है।
अतः विश्व के तमाम पहलुओं पर गम्भीरता से प्रकाश डालने से एक बात स्पष्ट हो जाती है कि चीन सदैव ही भारत के विरोध में ही खडा रहता है। पाकिस्तान का चीन खुलकर समर्थन इसीलिए करता है कि पाकिस्तान चीन के इशारे पर कार्य करता है। अब वही कार्य नेपाल भी करने की ओर बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है। चूंकि नेपाल ने जब अपनी जुबान खोली तो भारत के खिलाफ जहर उगलना आरंभ कर दिया। इसके पीछे मुख्य कारण चीन की ही चाल है। अतः भारत को अंतर्रष्ट्रीय स्तर पर चीन को घेरने की योजना बनानी चाहिए। जब तक चीन घिर नहीं जाता तबतक चीन भारत को चोरों ओर से क्षति पहुँचाने कार्य करता रहेगा।

वरिष्ठ पत्रकार एवं अंतर्राष्ट्रीय भौगोलिक विशेषज्ञ।
(सज्जाद हैदर)

                        

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।