कृपया दूरी वाले घेरे में टंगे रहें ..

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भारत प्राचीन काल से ही सोशल डिस्टेंसिंग प्रधान देश रहा है। जिसके माहात्म्य पर वेदों ,शास्त्रों में विस्तार से प्रकाश डाला गया है। हमारा ख्याल है कि कालान्तर में कोरोना वायरस के कारण ही ऐसी अवधारणा का जन्म धर्म शास़्त्रों में हुआ होगा। जिससे ऐसी सामाजिक दशा पनपी होगी। इसे नहीं छूना है, इसको नहीं देखना है, इसको नहीं पढ़ना है, इसको नहीेें खाना है, इसको नहीं पीना है, यहां नहीं जाना है, वहां नहीं जाना है, अगर जाआगे तो ये दण्ड मिलेगा, वो दण्ड मिलेगा…. जैसे आजकल पुलिस वाले छुआ-छूत करने वालों को अपने डण्डे से दण्ड देते पाए जा रहे  हैं। मेरा ख्याल है,  जब कोरोना चला गया होगा तभी यह छूआ-छूत वाली, सामाजिक दूरी पैदा करने वाली घृणित बुराई भी चली गई होगी। अब मैं तमाम पूजापाठ करने वालों से, यज्ञ करने वालों से, अल्लाह के नेक बंदों से, यही करबद्ध प्रार्थना कर रहा हूं कि वे अपने तपोबल से इस लाइलाज छूआ-छूत वाली बीमारी को भगाने में अपना महनीय योगदान दें, तभी समाज में कायदे से समरसता स्थापित हो सकेगी और लोगाें की जानें बचेंगी। वाकई में प्राचीन काल में कोरोना द्वारा फैली छूआ-छूत वाली इस लाइलाज बीमारी से कितना कष्ट हुआ होगा, जितना आजकल हम सब लोगों को हो रहा है। हर जगह एक मीटर की दूरी का मानक बनाए रखना पड़ता है, अगर कहीं दूरी का मानक जरा भी टूटा तो क्वारंटाइन या आईसोलेशन का डंडा तैयार रहता है। फर्ज करो जब इस समय इतनी तकलीफ है तो उस समय लोगाें पर क्या बीतती होगी, जब कि इस समय की अपेक्षा उस समय के दण्ड विधान भी मारने, काटने, कान में शीशा पिघलाने जैसे हुआ करते थे। भगवान करे, अल्लाह करे कोरोना नाम के इस कलमुए शैतानी वायरस का सत्यानाश हो जाए और ये सोशल डिस्टेंसिंग वाला, छुआ-छूत वाला, सारा ब्लैक एंड बैड सिस्टम भी उड़न छू हो जाए। हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी अपने संबोधन में फिजीकल यानी शारीरिक दूरी भी कह सकते थे, पर उन्हें प्राचीन काल वाले दुःख दर्द का स्मरण हो आया होगा, इसलिए उनको लोगों  से, इस कोरोना जैसी  छूआ-छूत वाली महामारी के राक्षस को भगाने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखने के लिए कहना पड़ा । अच्छा हो कि लोग उनकी तकलीफ को समझें और कोरोना भगाने में उनके आदेश को शिरोधार्य करें, जिससे  मजदूरों पर केमीकल डालने वाली स्थिति न पैदा हो और भूख, भय, बेकारी में उन्हें सैकडों किलो मीटर पैदल चल-चल कर मरना न पड़े और फिर बाद में मन की बात करते हुए हमारे पीएम साहब को माफी न मांगनी पड़े। इसलिए भाइयों और उनकीं बहनों छूआ-छूत वाली इस महामारी से बचने के लिए, थाली-शंख बजाते हुए, मोमबत्ती-दिए जलाते हुए, टार्च जलाते हुए ,इस कोरोना रूपी  दानव को भगाने के लिए हमारे पीएम साहब के आग्रह को मानते हुए इस छुआ-छूत वाले कोरोना को भगाए अन्यथा प्राचीन काल वाली  दु:खद सामाजिक दूरी के हम सब  शिकार बन सकतें हैं।

#सुरेश सौरभ

निर्मल नगर लखीमपुर-खीरी

matruadmin

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।