`आस`

1
0 0
Read Time7 Minute, 45 Second
kapil shastri
पंद्रह साल पुरानी बात है,वैष्णो देवी माता के दर्शन की मन में आस लिए भोपाल स्टेशन से मालवा एक्सप्रेस से हम पति-पत्नी और अपनी एक अदद बच्ची को साथ लिए पूरे श्रद्धा भाव से जम्मू के लिए
निकल पड़े थे। जम्मू से कटरा जा रही बस में अधिकतर भक्तगण ही थे,जिनके `जय माता दी,जय
माता दी` के जयकारों से वातावरण भक्तिमय हो चुका था। `चलो बुलावा आया है,माता ने बुलाया है` के साथ डेढ़ घंटे के लिए जो मुरादें हम अपने साथ लेकर आए थे,गौण हो चुकी थी और दर्शनों की अभिलाषा ही बची थी।
कटरा बस स्टैण्ड पर उतरते ही किसी की आस भरी नज़र हमारी पांच वर्षीय हल्की-फुल्की बच्ची पर टिक चुकी थी। पचास-पचपन का ही होगा,परंतु हाड़तोड़ मेहनत और तंगहाली ने समय से पूर्व ही
चेहरे पर झुर्रियां ला दी थी,मगर बदन में कसावट थी और चहरे पर एक मुस्कान,रोज़ सत्रह किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई जो चढ़ता था।
पास आकर पूछा-पिट्ठू चाहिए? इससे पहले पिट्ठू क्या होता है,मैं भी नहीं जानता थाl शायद टट्टू से भी छोटा कोई जानवर होता होगा,मैंने इसीलिए उससे पूछा था-कहाँ है पिट्ठू?
उसने बताया-जी मैं ही हूँ..आपकी बच्ची को कंधे पर बिठाकर ले जाऊँगा।
अपरिचित स्थान पर हम अपनी बच्ची को किसी अनजान शख्स के हवाले नहीं करना चाहते थे,मन शंका-कुशंकाओं से भर गया था,इसलिए उसे मना कर दिया और कह दिया कि,हमें पिट्ठू नहीं चाहिएl हम तो टट्टू करेंगे,मगर उसकी `आस` नहीं टूटी।
लंबी यात्रा के बाद थोड़ी थकावट थी,इसलिए पहले दिन होटल में विश्राम करके दूसरे दिन सुबह से चढ़ाई करने का निर्णय लिया। सुबह मतलब,जब हमारी सुबह हो जाए। वो नज़र बराबर हम पर टिकी हुई थी,होटल आते-जाते,बाजार में,दुकानों पर हर जगह वो आस भरी नज़र हमारा पीछा कर रही थी। वज़न को देखकर शायद उसने अपना ग्राहक
चुन लिया था और ये सोचकर अंदर-ही-अंदर खुश भी हो रहा था कि,इतनी हल्की बच्ची को लेकर तो वो आसानी आसानी से चढ़ जाएगा,ये मुस्कराहट शायद इसी वजह से हो। मैं आश्चर्यचकित था कि,मेरे  इन्कार के बावज़ूद उसमें  इतना आत्मविश्वास और धैर्य कैसे हैl
मैं नामी फार्मास्यूटिकल कंपनी में मेडिकल रिप्रेजेन्टेटिव था और मुझे भी चिकित्सकों से पर्चियां निकलवाने के लिए जब उनके दवाखाने में लंबा इंतज़ार करना पड़ता था तो एक खीज आती थी। प्रतीक्षा ही सबसे दुष्कर कार्य प्रतीत होता था। घंटों बसों में,ट्रेन में कभी बैठकर-कभी खड़े-खड़े होकर गाँवों-कस्बों में जाना,मगर जब पर्चे निकलकर आते थे और केमिस्ट बोलते थे कि,तुम्हारा तो बहुत माल उठा रहे हैं,तो उत्साह आ जाता थाl तब वो थकान भूल जाता  था,और अगले दिन दुगने उत्साह से व्यापार बढ़ाने में लग जाता था।
दूसरे दिन भी वो हमारे उठने से पहले ही होटल के बाहर आ कर बैठ चुका था। हम उससे नज़रें चुराकर निकल तो लिए,मगर अब उसकी नज़र हमारी पीठ पर थी। टट्टू करने से पहले मैं उसके पास गया और पूछा-अगर तुम मेरी बच्ची को ऊपर तक ले जाते तो कितना लेते? उसने पचास रुपए बताया। उसके सतत प्रयास और तंगहाली को देखते हुए मैंने उसे पचास रुपए दिए और कहा-ये तुम रख लो,हम तो टट्टू ही करेंगे।
अगर उस स्थान पर कोई टैक्सी या बस होती तो,मेहनतकश इंसान का कोई मोल नहीं होता,परंतु यहाँ दो मेहनतकशों के बीच का चुनाव था। दुबले-पतले,मोटे ताज़े,युवा,अधेड़,वृद्ध सभी टट्टूओं को ही प्राथमिकता देते हैं,पिट्ठूओं के पास सिर्फ बच्चे ही बचते हैं। इसमें भी टट्टू ही बाज़ी मार रहे थे।
बड़े ही अनमने भाव से उसने वो पचास रुपए स्वीकार किए। जो आस हमारे इन्कार  के बाद भी नहीं टूटी थी,इन पचास रुपयों ने वो तोड़ दी थीl अंतिम समय तक शायद उसे उम्मीद थी कि,हम अपना निर्णय बदल देंगे। उसकी  मुस्कान गायब हो चुकी थी,ऐसा लगा जैसे उन पचास रुपयों की उसे सख्त ज़रुरत तो थी,किन्तु मैंने उसका मोल  कागज़ के एक टुकड़े के बराबर कर दिया होl जैसे सत्रह किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई चढ़कर ऊपर ले जाने की मेहनत ही उसके लिए सोना थी,वो अब मिटटी में तब्दील हो चुकी थी,उसकी सारी आशाओं पर पानी फिर चुका था,उसके सतत प्रयासों का फल जैसे कसेला हो चुका हो।
भोपाल लौटकर मैं कंपनी के कामकाज में लग गया और उस पिट्ठू को भुला दिया। साल-दर-साल कंपनी के लक्ष्य  सुरसा के मुंह जैसे बढ़ते जा रहे थे,अब `स्काई इज द लिमिट` नहीं थी,वो उससे आगे भी कुछ देखने लगे थे। गेट समझौता लागू होने के बाद कम्पनीज में आपस में ही गला-काट प्रतियोगिता शुरु हो चुकी थी। प्रबंधकों पर गाज़ गिरने लगी थी। मैं भी अब तक प्रबंधक बन चुका था। पांच वर्ष पश्चात् उल-जलूल आरोप लगाकर आरोप-पत्र तैयार किया गया और पीएफ़ तथा मुआवजा देकर त्याग पत्र ले लिया गया। ये मुआवजा लेते वक़्त मुझे खुद अपना चेहरा भी उस पिट्ठू की तरह नज़र आया। आज भी वो नज़र मेरा पीछा करती है,और पूछती है कि,-आपने मुझसे मेरी मेहनत क्यों छीन ली? मगर ये बात न वो मुझसे,न मैं कंपनी से बोल पाया।

                                                                               #कपिल शास्त्री

परिचय : 2004 से वर्तमान तक मेडिकल के व्यापारी कपिल शास्त्री भोपाल में बसे हुए हैं। आपका जन्म 1965 में  भोपाल में ही हुआ है। बीएससी और एमएससी(एप्लाइड जियोलॉजी) की शिक्षा हासिल कर चुके श्री शास्त्री लेखन विधा में लघुकथा का शौक रखते हैं। प्रकाशित कृतियों में लघुकथा संकलन ‘बूँद -बूँद सागर’ सहित ४ लघुकथाएँ-इन्द्रधनुष,ठेला, बंद,रक्षा,कवर हैं। द्वितीय लघुकथा भी प्रकाशित हो गया है। लघुकथा के रुप में आपकी अनेक रचनाएँ प्रकाशित होती हैं।

 

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

One thought on “`आस`

  1. कपिल जी एक बेहतरीन संस्मरण जिसे आपने कथा में ढाला है । पिट्ठुवाले की भावना हम से भी जुड़ गई । यही सफ़लता है कथा की । लाजवाब संप्रषणीयता । बधाई लें भाई ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

सचिन चालीसा

Mon Apr 24 , 2017
(सचिन तेंडुलकर के जन्मदिन पर) जय सचिन क्रिकेट के तारे। तुम्हरे बल्ले से सब  हारे।। मुम्बई में जनम तुम पाया। भीम शिवा-सा नाम कमाया।। मां रजनी ने दूध पिलाया। अजित अंजली साथ निभाया सोलह बरस की उमर थी भाई। अभिमन्यू  की  याद दिलाई।। पहला  मैच  पाक  से खेला। अकरम की […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।