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नदी सा हूँ
धाराओं में बहूँगा।
जंगल सा हूँ
बीहड़ लगूँगा।
अन्वेषक हूँ
कुछ नया पा लूँगा।
हिमालय सा हूँ
बर्फ सा लगूँगा।
यात्री हूँ
चलता रहूँगा।
फूल सा हूँ
बार-बार खिलूँगा।
चेतना हूँ
क्रियाओं में रहूँगा।
प्रशान्त हूँ
शान्ति को जन्म दूँगा।
आग हूँ
जनम भर जलूँगा।
#महेश रौतेला
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