पराभव से परम वैभव की ओर बढ़ती स्वतन्त्रता

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आज़ाद भारत, सतहत्तर वर्ष का यौवन और असंख्य बलिदानों से लिखी इस संकल्पना के अमृतकाल का गौरव गान तब पूर्ण होगा, जब शताब्दी की ओर बढ़ती आज़ादी अपने देशवासियों को विस्तृत फ़लक पर मज़बूत कर दे।
भारत की आज़ादी बलिदानों के दर्ज पदचिह्न हैं, जिस पर चलकर अमृतकाल के भारत का नवनिर्माण हो रहा है। संवैधानिक आलोक से मुखर स्वर आज वेदना के पराभव पर दर्ज तो होते हैं किन्तु परम वैभव की यात्रा में बाधक नहीं होते।
वर्तमान कालखण्ड में हम भारतवासी उसी आज़ादी के असंख्य बलिदानों का स्मरण करते हैं, हमारे बच्चे यूक्रेन से हाथों में तिरंगा लेकर सकुशल लौटते हैं, यहाँ तक कि दुश्मन देश के बच्चे भी यूक्रेन से बाहर निकलने में तिरंगे का ही सहारा लेते हैं। यह कारण है कि बलिदानियों के पुरुषार्थ से बुना हुआ तिरंगा आज भारत के वैश्विक और प्रभुत्वशाली परिचय का संवाहक है।

अब कीर्तिगाथाओं के साथ-साथ आगे बढ़ने वाला यह नवोन्मेषी भारत है, जो सिंह गर्जना के साथ समग्र विश्व को यह बताने में सफल हो रहा है कि वैश्विक केन्द्र अब भारत ही होगा। चाहे शिक्षा हो अथवा व्यवसाय, चिकित्सा हो अथवा औषधि, सभ्यता हो अथवा संस्कृति।
इसी गौरवशाली भारत के वैश्विक परिचय और प्रभाव के कारण वर्तमान दौर में राष्ट्र के निवासियों के उत्साह और आत्मविश्वास में अभिवृद्धि हुई है।
भविष्य की इमारत भी इसी नींव पर आश्रित रहेगी। और हम भारतीय अपने संकल्पशक्ति से पराभव को पीछे छोड़कर परम् वैभव की यात्रा तय करेंगे।

नए भारत की नींव में छात्रों के अनुसंधानों से लेकर शोधार्थियों के प्रयोग, मज़दूर का पसीना, उद्योगपतियों के नवाचार, मूल्य, साहित्यकारों का लेखन, पत्रकारों की दृष्टिसंपन्नता, अफ़सरों की कर्त्तव्यपरायणता, मातृशक्ति का वात्सल्य, किसान की पैदावार, वैज्ञानिकों का विज्ञान, राजनायकों की जन सेवा, समाजसेवियों की आंतरिक मज़बूती, चिकित्सकों की सेवाएँ, इंजीनियरों का असाध्य श्रम, समय दानियों का समय व जवानों का बलिदान शामिल हैं।

आम आदमी इस समय अपनी मूलभूत आवश्यकताओं के अलावा स्व सम्पन्नता भी चाहता है, इसी कारण रोज़गार माँगने वाले नहीं बल्कि रोज़गार देने वालों की पंक्ति अधिक बड़ी है। हमारे प्रतिष्ठान अब मज़बूती के साथ समाज में मौजूद हैं।

देश प्रगति तब करता है , जब उस राष्ट्र के नागरिक केवल अधिकारों की बात न करके, कर्त्तव्यों का निर्वहन पहले करते हैं और यही भावनात्मक सम्बन्ध माटी, जन्मभूमि व भारत भूमि बनता है।

वर्तमान का भारत आने वाले 25 वर्षों के लिए तेज़ गति से चलने वाला भारत बन रहा है। अब देश के नागरिकों को भी हौंसलो की उड़ान के साथ उड़ना होगा।
शताब्दी की ओर बढ़ते-बढ़ते हम अपने अधिकारों के प्रति सजग रहकर कर्त्तव्यों का निर्वहन ईमानदारी से करते रहेंगे, तब जाकर भारत अधिक मज़बूत होगा।
स्वतंत्रत्य समर में हुआ प्रत्येक बलिदान भारतीय नागरिकों को अपने कर्त्तव्यों का स्मरण करवाता है, इसी भाव के साथ, शुभमस्तु। शुभ स्वाधीनता दिवस।

#डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
पत्रकार एवं लेखक
इन्दौर, मध्यप्रदेश

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संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।