समकालीन ग़ज़ल और विनय मिश्र पुस्तक से गुज़रते हुए

0 0
Read Time2 Minute, 33 Second

हिन्दी कविता की परंपरा में ग़ज़ल को शामिल न करने के पीछे परम्परावादी आलोचक की अपनी मजबूरियां भी हैं , और वो ये है कि ग़ज़ल लिखने और समझने के लिए जिस शऊर की ज़रूरत पड़ती है वो उनकी काव्य प्रतिभा के बाहर है. ऐसी तमाम कोशिशों के बाद भी आज ग़ज़ल ही सबसे ज़्यादा पाठक वर्ग तक पहुंच रही है जिसका कारण उसका लबो लहजा और तासीर है. सिर्फ आम पाठक ही नहीं न्यायालय के जज और बजट पेश करते हुए मंत्री भी शेर का इस्तेमाल कर रहे हैं.

हिन्दी ग़ज़ल को दुष्यंत ने जो लोकप्रियता दी उसकी परम्परा को जिन शायरों ने शिद्द्त के साथ बचा रखा है, उनमें एक ताक़तवर नाम विनय मिश्र का भी है, इसलिए ज़रूरी हो गया था कि आलोचना के स्तर पर भी उनकी ग़ज़लों को परखा और समझा जाये, जिस काम को एक आलोचक लवलेश दत्त ने ही निभाया और उनके सम्पादन में विद्यानिधि प्रकाशन दिल्ली से ही कुछ वक़्त कबल ही ‘समकालीन ग़ज़ल और विनय मिश्र ‘किताब अपने पूरे आकर्षण के साथ छप कर आई है. जिसमें देश के तैंतीस आलोचकों ने विनय मिश्र की ग़ज़ल पर अपनी बात प्रमुखता से रखी है. लगभग साढ़े तीन सौ से कुछ कम पृष्ट की ये किताब हिन्दी ग़ज़ल का जायज़ा लेती ही है, इस परम्परा को आगे बढ़ाने में विनय मिश्र के अवदान की चर्चा भी करती है. इस क्रम में वागीश शुक्ल जहां विनय साहब को भरोसे का शायर बताते हैं तो अनिल राय मानते हैं कि उनके ग़ज़लें गहरे विचार बोध की उपज है. श्रीधर मिश्र की नज़रों में उनकी ग़ज़लों में समय की साफ़ तस्वीर है तो लवलेश दत्त का मानना है कि भाषाई विविधता उनकी ग़ज़लों की खूबसूरती है..

इसमें दो राय नहीं है कि आज जहां हिन्दी ग़ज़ल पहुंची है वहां इस किताब की ज़रूरत महसूस की जा सकेगी. इनके बिना ग़ज़ल का अध्यापन होना मुश्किल ही नहीं ना मुमकिन भी है…

#जियाउर रहमान जाफ़री 

नालंदा(बिहार)

matruadmin

Next Post

व्यंग्य और हास्य का बेहतरीन संतुलनः डेमोक्रेसी स्वाहा

Thu Mar 12 , 2020
बहुत छोटी उम्र में व्यंग्य के क्षेत्र में अपनी पैठ बना चुके सौरभ जैन का हाल ही में पहला व्यंग्य संग्रह ‘डेमोक्रेसी स्वाहा’ भावना प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित हुआ है। 52 व्यंग्य इस संग्रह में प्रकाशित है, जिनमें से अधिकांश विभिन्न दैनिक अखबारों के व्यंग्य का कालमों में प्रकाशित हुए […]

नया नया

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष, ख़बर हलचल न्यूज़, मातृभाषा डॉट कॉम व साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। साथ ही लगभग दो दशकों से हिन्दी पत्रकारिता में सक्रिय डॉ. जैन के नेतृत्व में पत्रकारिता के उन्नयन के लिए भी कई अभियान चलाए गए। आप 29 अप्रैल को जन्में तथा कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएच.डी की उपाधि प्राप्त की। डॉ. अर्पण जैन ने 30 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण आपको विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन द्वारा वर्ष 2020 के अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से डॉ. अर्पण जैन पुरस्कृत हुए हैं। साथ ही, आपको वर्ष 2023 में जम्मू कश्मीर साहित्य एवं कला अकादमी व वादीज़ हिन्दी शिक्षा समिति ने अक्षर सम्मान व वर्ष 2024 में प्रभासाक्षी द्वारा हिन्दी सेवा सम्मान से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं, साथ ही लगातार समाज सेवा कार्यों में भी सक्रिय सहभागिता रखते हैं। कई दैनिक, साप्ताहिक समाचार पत्रों व न्यूज़ चैनल में आपने सेवाएँ दी है। साथ ही, भारतभर में आपने हज़ारों पत्रकारों को संगठित कर पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग को लेकर आंदोलन भी चलाया है।