ज़ाम छलकाने पर ज़ाम लगने की खबर पढ़ते ही हमारे पड़ोस के काका जिनके रात्रि के कार्यक्रमों(करतूतों) से सारा मोहल्ला मनोरंजन करता था,उनके घर में सन्नाटा-सा छा गया।हम काका की ख़ामोशी से विचलित होकर उनके हाल-चाल लेने उनके घर जा पहुंचे।
काका गुमसुम-से खटिया पर निढाल पड़े थे। हमने जय रामजी कहकर धीरे से पास ही पड़ी अंग्रेजों के ज़माने की कुर्सी पर अपनी तशरीफ़ जमा ली।और पूछा-काका क्या हो गया अचानक,तबियत तो ठीक है न?
काका रुआँसे स्वर में बोले-बेटा,अब तक तो ठीक थी,पर अब सरकार ठीक न रहने देगी। पहले गुज़रात,फिर बिहार और अब मध्यप्रदेश में भी बंद होने की खबर है। पता नहीं,इन सरकारों का हम लोगों ने क्या बिगाड़ा है? जो बन बैठे हैं शराब के दुश्मन।अरे बेटा ये परम्परा तो उस ज़माने से है,जब देव-असुर भी सुरापान किया करते थे ‘सोमरस’आह…! कहते हुए काका इंद्रलोक की परिकल्पना में खो गए। काका के चेहरे पर इंद्र-सा तेज़ था। मानो साक्षात् इंद्र अपने इंद्रासन पर आसीन हो..उर्वशी,रंभा आदि अप्सराओं के साथ विलासिता में व्यस्त हो। हमने कहा-काका,फिर क्या हुआ? काका अपनी नींद से जागे और पुनः पृथ्वीलोक में अपनी उपस्थिति देखकर खिसियाते हुए बोले-‘शराब वो चीज़ है,जिसके बारे में एक शराबी ही समझ सकता है। बेटा तुम नहीं समझोगे। जाओ,सो जाओ और मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो।’
हमने कहा-‘काका बताओ न हुआ क्या है?’
काका बोले-‘ठीक है बेटा सुनो,शराब धर्मनिरपेक्ष,समाजवादी और जातियों से परे है। चाहे गरीब हो या अमीर, हिन्दू,मुस्लिम या ईसाई।ब्राह्मण हो या शुद्र,शराब सबके साथ एक-सा व्यवहार करती है। और हाँ, बेटा शराब व्यक्ति के विकास में बहुत योगदान देती है।’
हमने कहा-‘वो कैसे काका?’
काका बोले-‘बेटा शराब पीने के बाद एबीसीडी न जानने वाला भी फर्राटेदार अंग्रेज़ी बोलने लगता है।शराब पीकर ही आजकल कई कलाकार मंच पर शानदार प्रस्तुतियाँ देते हैं। इसे पीते ही व्यक्ति में इतनी ऊर्जा आ जाती है कि, वो शोषण के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ बुलंद कर पाता है। भले ही दूसरे दिन उसके मानवाधिकारों का हनन कर लिया जाए,पर बात रखने की हिम्मत भी तो देती है यह। क्या सरकारें यह भूल गई कि,आज भी चुनावी माहौल में ये वोट के लिए महत्वपूर्ण हथियार है? ग़म हो या ख़ुशी,तनहाई हो या सम्मेलन, सभी अवसरों पर ये लोगों के सुख और दुःख की साथी बन जाती है। होली हो या किसी की बारात,प्यारा-सा नागिन नृत्य,ये सब कलाएँ विलुप्त करने का षड्यंत्र है यह। देवदास,शराबी जैसी सब फिल्में क्या इतिहास बन जाएगी?क्या हरिवंश साहब की मधुशाला इस तरह लोगों को समझ आएगी? क्या होगा ग़ालिब से शेर-ओ-शायरी लिखने और समझने वालों का? क्या होगा टूटे हुए दिल लेकर घूमने वालों का? आशिकों और उनके गम भरे नगमों का? बेटा सच तो यह है कि, भारत में कई चीज़ों पर सरकार ने पाबंदी लगाई है जैसे जुआं,सट्टा, ड्रग्स,गांजा..लेकिन क्या सच में सब बंद है तुम्हीं कहो? पर यह सब,अब सरकार की जगह नेताओं और अफसरों का राजस्व बढ़ा रहे हैं। अब आबकारी से भी राजस्व बढ़ेगा,जो कि सीधा जाएगा जेब में। भाई पीने वाला तो रहा छोड़ने से। बेटा,हमें शराबबंदी से कोई घबराहट नहीं हुई, न ही कोई परेशानी है हमें। हम तो बस देश के लिए चिंतित हैं। २ अक्टूबर जैसे ड्राई-डे पर भी बाहर थैली में लिए बैठे लोगों से लेकर हम अपनी व्यवस्था बना लेते थे। अब भी बना लेंगें,पर देश को राजस्व की कितनी हानि होगी,तुम्हीं सोचो?’ यह कहकर चाचा अपनी व्यवस्था बनाने निकल पड़े।
ख़ैर शराबबंदी सरकार का अच्छा फैसला है,जिसका निश्चित ही स्वागत होना चाहिए। शराब पीकर वाहन चलाने से कई दुर्घटना होती है। मदिरा के नशे में उपद्रवी तत्व विभिन्न अपराधों को अंजाम देते हैं। महिलाओं से जुड़े हुए अपराध लगातार इससे बढ़ रहे हैं। सरकार जो कर रही है,बेहतर है,लेकिन काका जी की चिंता भी अपनी जगह लाज़मी है।
(लेख का उद्देश्य शराब को बढ़ावा देना नहीं है।)
#शशांक दुबे
परिचय : शशांक दुबे पेशे से उप अभियंता (प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना), छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश में पदस्थ है| साथ ही विगत वर्षों से कविता लेखन में भी सक्रिय है |