क्यो छोड़ दिया साथ

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कितना लूटोगे तुम अपना बनकर।
कितना और सताओगे
अपना बनकर।
कभी तो तुमको शर्म आयेगी वे गैरत इंसान।
या काटोगे उसी डाली को
जिस पर बैठा करते थे कभी तुम।।

सफलता तुमको मिल है, बहुत खुशी की ये बात है।
परन्तु अपनी सफलता में
तुम इतना मत इतराओ।
की जिन्होंने तुम्हे पहुंचाया है शिखर पर।
कही वो ही तुम्हारे पतन का कारण न बन जाये।।

इसलिए संजय कहता है
एक सही बात।
बनाकर तुम चलो सदा अपनो के साथ।
नही तो छोड़ देंगे तुम्हे
तुम्हारे ही अपने लोग।
फिर तुझे एहसास होगा
की क्या खोया क्या पाया है।।

सफलता की चकाचौन्ध में, तुझे हो गया था घमंड।
अब आ गया वही जहां से
तू उठता था कभी।
तुझे अपने असलियत अब पता चल गया।
क्योकि छोड़ दिया तेरा साथ अपनो ने ही।।

#संजय जैन 

परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों  पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से  कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें  सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की  शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।

matruadmin

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