जीवन के असली मंत्र को उद्घाटित करती ‘हाय री! कुमुदिनी’

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क्यों मानें कि सपना कोई साकार नहीं होता,
हम गुजरे कल की आंखों का सपना ही तो हैं।।

सुनील चौरसिया ‘सावन’ संभवत: स्नातक द्वितीय वर्ष के छात्र थे जब पहली बार उन्होंने मुझे काव्य सर्जना में अपना प्रथम प्रयास दिखलाया था जो गीता का भावानुवाद (श्रीकृष्णार्जुन भावधारा ) था। प्रथम प्रयास में ही गीता का भावानुवाद एक ऊँची छलांग थी। उसका मनोबल काबिले तारीफ था। काव्य सर्जन की प्रतिभा प्रस्फुटित हो रही थी। उसकी उड़ान यदि पूर्णतः सधी हुई नहीं थी तो पूर्णतः अपरिपक्व भी नहीं थी। भाव प्रचुर थे। बस अनुभव और थोड़े अभ्यास से परिमार्जन अपेक्षित था।
सुनील चल पड़ा था काव्य कल्पना के उन्मुक्त गगन में, भले ही अभी शुरूआत में उड़ान ऊँची और गहरी नहीं थी लेकिन यह बहुत दूर भी नहीं थी।

      प्रस्तुत काव्य संकलन 'हाय री! कुमुदिनी ' के प्रथम ड्राफ्ट को पढ़ने के बाद निश्चिन्तता के साथ कह सकता हूँ कि इन सात वर्षो के अंतराल में उस उड़ान में विविधता और गहराई दोनों ही आ गयी है। आकाश तो शून्य के समान असीमित है और काव्य कल्पना भी जहाँ तक संभव है उस परिमित आकाश को घेरना चाहती है। इस संकलन की सभी कविताओं पर दृष्टिपात करने से ज्ञात होता है कि सुनील के मन में परिवेश से लेकर पर्यावरण तक, समाज से लेकर निजी मन तक, गाँव से लेकर शहर तक, स्त्री से लेकर पुरुष तक, आकाश से लेकर धरती तक, जीवन के लिए महत्वपूर्ण प्रत्येक अवयव तक के लिए बेचैनी भी है और भाव भी। बेचैनी विकृति को ठीक करने के लिए और भाव सौंदर्य बोध जगाने के लिए। 

‘गर्भ में बेटियाँ’ कन्या भ्रूण हत्या की सशक्त खिलाफत करती है तो ‘पहाड़’ बहुत ही खूबसूरती के साथ जीवन की असमान धारा एवं स्थिति को निरूपित करती है। ‘आओ, पढ़ाई कर लो बेटी’ में नारी सशक्तिकरण है तो ‘खोयी हुई दुनिया’ जीवन के असली मंत्र को उद्घाटित करती है। ‘वृक्ष लगाना सीखो भारत ‘ पर्यावरणीय चेतना का उदगार है तो ‘ ज़िन्दगी है पापा के पाँवों के नीचे’ कुट॒म्ब व्यवस्था में पिता की स्थिति का वर्णन है। ‘जिंदगी एक सपना’, ‘फिसल गई जिंदगी’ और ‘जिंदगी एक पहेली ‘ ये सभी कविताएं कवि सुनील चौरसिया ‘सावन’ के अन्तर्मन में चलने वाले द्वन्द्व को सफलतापूर्वक उद्घाटित करती हैं।

यह कवि का प्रथम प्रयास है। मैं बधाई और शुभकामना दोनों देता हूँ कि यह प्रयास निरंतर चलता रहे और सुनील की काव्य प्रतिभा चंदन की भाँति अपनी खुशबू बिखेरती चले।

डॉ. आमोद कुमार राय ‘पंकज’
एसोसिएट प्रोफेसर, अंग्रेजी विभाग,
बुद्ध स्नातकोत्तर महाविद्यालय, कुशीनगर, उत्तर प्रदेश

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