अपने और सच्चे,
कभी भी साथ
नही छोड़ते हैं..
चाहे जैसी मुसीबत
हो,साथ में होते हैं।
परीक्षा जो लो,
मुसीबत में मुँह
नहीं मोड़ते हैं,
वे तो मतलबी..
यार है जो समय
बदलते ही अपनों
से रिश्ता तोड़ लेते हैं।
ये दोस्त यार नहीं,
मतलब परस्त ही
लोग होते हैं,
जो मतलब हल
होने निकलने पर
मुँह मोड़ लेते हैं।
ऐसे लोग दगा भी,
करते हैं दगा देते हैं..
हमारा खाएंगे
दूसरे का बजाएंगे,
पीठ पीछे उन्हीं
का गुण गाएंगे,
हाँ मे हाँ मिलाएंगे।
मौका पड़ने पर,
दूर हट जाएंगे
बस दूर से खड़े
खड़े बस
तमाशा देखेंगे,
दलबदलू जो हैं,
अपने स्वार्थ की
खातिर कुछ भी
करते जाएंगे।
#अनन्तराम चौबे
परिचय : अनन्तराम चौबे मध्यप्रदेश के जबलपुर में रहते हैं। इस कविता को इन्होंने अपनी माँ के दुनिया से जाने के दो दिन पहले लिखा था।लेखन के क्षेत्र में आपका नाम सक्रिय और पहचान का मोहताज नहीं है। इनकी रचनाएँ समाचार पत्रों में प्रकाशित होती रहती हैं।साथ ही मंचों से भी कविताएँ पढ़ते हैं।श्री चौबे का साहित्य सफरनामा देखें तो,1952 में जन्मे हैं।बड़ी देवरी कला(सागर, म. प्र.) से रेलवे सुरक्षा बल (जबलपुर) और यहाँ से फरवरी 2012 मे आपने लेखन क्षेत्र में प्रवेश किया है।लेखन में अब तक हास्य व्यंग्य, कविता, कहानी, उपन्यास के साथ ही बुन्देली कविता-गीत भी लिखे हैं। दैनिक अखबारों-पत्रिकाओं में भी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। काव्य संग्रह ‘मौसम के रंग’ प्रकाशित हो चुका है तो,दो काव्य संग्रह शीघ्र ही प्रकाशित होंगे। जबलपुर विश्वविद्यालय ने भीआपको सम्मानित किया है।