
. (१६ मात्रिक गीत)
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बहुत जलाए पुतले मिलकर,
अब तो मन का रावण मारे।
जन्म लिये तब लगे राम से,
खेले कृष्ण कन्हैया लगते।
जल्दी ही वे लाड़ गये सब,
विद्यालय में पढ़ने भगते।
मिल के पढ़ते पाठ विहँसते,
खेले भी हम साँझ सकारे।
मन का मैं अब लगा सताने,
अब तो मन का रावण मारें।
होते युवा विपुल भ्रम पाले,
खोया समय सनेह खोजते।
रोजी रोटी और गृहस्थी,
कर्तव्यों के सुफल सोचते।
अपना और पराया समझे,
सहते करते मन तकरारें।
बढ़ते मन के कलुष ईर्ष्या,
अब तो मन के रावण मारें।
हारे विवश जवानी जी कर,
नील कंठ खुद ही बन बैठे।
जरासंधि फिर देख बुढ़ापा,
जाने समझे फिर भी ऐंठे।
दसचिंता दसदिशि दसबाधा,
दस कंधे मानेे मन हारे,
बचे नहीं दस दंत मुखों में,
अब तो मन के रावण मारें।
जाने कितनी गई पीढ़ियाँ,
सुने राम रावण की बातें।
सीता का भी हरण हो रहा,
रावण से मन वे सब घातें।
अब तो मन के राम जगालें,
अंतर मन के कपट संहारें।
कब तक पुतले दहन करेंगे,
अब तो मन के रावण मारें।
रावण अंश वंश कब बीते,
रोज नवीन सिकंदर आते।
मन में रावण सब के जिंदे,
मानो राम, आज पछताते।
लगता इतने पुतले जलते,
हम हों राम, राम हों हारे।
देश धरा मानवता हित में,
अब तो मन के रावण मारें।
बहुत जलाए पुतले मिलकर,
अब तो मन के रावण मारें।
नाम–बाबू लाल शर्मा
साहित्यिक उपनाम- बौहरा
जन्म स्थान – सिकन्दरा, दौसा(राज.)
वर्तमान पता- सिकन्दरा, दौसा (राज.)
राज्य- राजस्थान
शिक्षा-M.A, B.ED.
कार्यक्षेत्र- व.अध्यापक,राजकीय सेवा
सामाजिक क्षेत्र- बेटी बचाओ ..बेटी पढाओ अभियान,सामाजिक सुधार
लेखन विधा -कविता, कहानी,उपन्यास,दोहे
सम्मान-शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र मे पुरस्कृत
अन्य उपलब्धियाँ- स्वैच्छिक.. बेटी बचाओ.. बेटी पढाओ अभियान
लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः