सिमटती हिन्दी

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gourav jainवर्तमान परिदृश्य में देखें तो भारत के सबसे अधिक लोगों के बीच अभिव्यक्ति का,विचार प्रेषित करने का माध्यम हिन्दी भाषा ही है,पर वह सिमटती जा रही है। उसका क्षेत्र कम हो रहा है। आजादी के वक्त जहाँ हिन्दी सम्पूर्ण उत्तर भारत में लोकप्रिय थी और संविधान निर्माताओं ने लक्ष्य रखा था कि हिन्दी को आने वाले कुछ दशकों में पूरे भारत की भाषा बनाएंगे जिसमें भारत का प्रत्येक व्यक्ति अच्छे से हिन्दी बोलेगा,लिखेगा व पढ़ सकेगा,परन्तु पूर्ववर्ती सरकारों की अंग्रेजी भक्ति व क्षेत्रिय भाषाओं को प्रोत्साहित करने के झूठे दावों के परिणाम स्वरुप आज हिन्दी अपना पूर्व रुप भी खो बैठी है। दक्षिण पूर्वी भारत तो दूर,अपने मूल क्षेत्र मध्य भारत से भी हिन्दी अपनी जमीन से खिसक रही है। नई पीढ़ी में हिन्दी मात्र घर की भाषा बनकर रह गई है, जिसमें बड़े-बुजुर्गों से बातचीत तक हिन्दी को सीमित कर दिया गया है, उसमें भी अंग्रेजी के शब्दों का समावेश होना आम बात है। विद्यालयों में आज हिन्दी अनिवार्य होते हुए भी ऐच्छिक विषय बनकर रह गई है। अध्यापक हिन्दी पर ध्यान नहीं देते,उसे मात्र उत्तीर्ण होने तक सीमित रखा है,तो कॉन्वेंट स्कूलों ने हिन्दी को निचले पायदान पर खिसका दिया है। त्रिभाषा सूत्र के होते हुए भी वह द्वितीय भाषा के रुप में जर्मन,फ्रेंच जैसी यूरोपियन भाषाओं को महत्व देते हैं,उनका लक्ष्य भारतीयों की संस्कृति-सभ्यता में पाश्चात्य विचार व सिद्धांत घोलना है,जिसका सरल व सहज माध्यम भाषा है। हिन्दी के कम होते इस परिक्षेत्र को दृष्टिगत रखते हुए भाषा चिंतकों को इस विषय में सोचना चाहिए कि,हमारा उद्देश्य किसी भाषा को राष्ट्र से खत्म करना नहीं,न ही विदेशी भाषा का बहिष्कार है। हमारा उद्देश्य है हिन्दी को बढ़ाना,क्योंकि प्रत्येक भाषा का स्वतंत्र वजूद होता है और उसका अपना साहित्य,जो हजारों लोगों के बीच लोकप्रिय होता है,किन्तु जब कोई अन्य भाषा हमारे क्षेत्र पर अपना इतना प्रभाव जमा ले कि निज भाषा अपना स्थान खो दे तो चेतने की आवश्यकता है। इसके लिए सभी तरह से कोशिश की जाए। इसमें सभी का साथ लिया जाए,खास तौर पर अपनों का,क्योंकि साथ सदैव अपने ही देते हैं। परायों ने तो आज तक घर ढहाने का ही कार्य किया है,इसलिए तो कहा गया है-
‘निज भाषा उन्नति अहे सब उन्नति को मूल…।’
     #गौरव जैन ‘शुद्धात्म’

परिचय: गौरव जैन ‘शुद्धात्म’ ,बीए में अध्ययनरत है। कोटा(राजस्थान) निवासी गौरव को धार्मिक काव्य लिखने का बहुत शौक है। गद्य लिखने का प्रयास भी करते हैं।

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संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।