संजय अश्कपुलपुट्टा,बालाघाट
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भीड मे अब इंसान नही मिलता
लोगो मे स्वाभिमान नही मिलता.
मायूस लौटती है सदाये वहां से भी
मंदीरो मे भगवान नही मिलता.
कई परिंदे आज भी यहां ऐसे है
जिन्हे उडने आसमान नही मिलता.
साहबजादो के चार-छः बंगले है
मजदुरो को रहने मकान नही मिलता.
सरकारे बदली है पर हालात नही
खूश यहां कोई किसान नही मिलता.
मां बाप हो जाते है बेसहारा एकदिन
हक मे बेटा जवान नही मिलता.
हसकर मिलना दस्तुर बन गया है
कौन जीवन से परेशान नही मिलता?
ईमान बीन ऐसे जी रहे है लोग ये
मर गये है पर श्मशान नही मिलता.
रूपयो का है यहां बोलबाला ‘अश्क’
मानवता को कोई स्थान नही मिलता.
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