विरहद का गम

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sanjay
ब्याह हुआ है अभी हाल  में,
और आ गया सावन ये।
अब छोड़ पिया को जाना पड़ेगा,
माता पिता के आंगन में।
कैसे मैं रह पाऊंगी,
 उनके बिना वहां पर में ?
कितना प्यार दिया उन्होंने,
जान मेरी वो बन गए।।
अभी आना था क्या सावन को,
जिससे हम दोनों अब बिछड़ रहे।
मधुर मिलन का कहते महीना,
फिर क्यो दोनों बिछड़ रहे ?
छोड़कर जन्नत जा रहे,
कितने दिनों वहां पर।
क्या दिल उनके बिना लग पायेगा,
या ख्यालो में ही समय गुजर जाएगा।।
मधुर मिलन का है महीना।
कहते जिसे सावन का महीना।
प्रीत प्यार का है महीना,
कहते जिसे सावन का महीना।
नई नबेली दुल्हन को,
प्रीत बढ़ाता ये महीना।।
ख्वाबो में डूबी रहती है,
दिन रात सताती याद उन्हें।
होती रिमझिम वारिश जब भी,
दिल में उमड़ती तरंग अनेक।
पिया मिलन को तरस रही है,
सावन के महीने में वो।।
रोग लग हैं नया नया,
क्योंकि ब्याह हुआ हैं अभी अभी।
करे इलाज कैसे इसका,
मिट जाए ये रोग नया।
पिया मिलन तुम करवा दो,
सावन के इस महीने में।
संग झूलेंगे और खेलेंगे,
 तो मिट जाएंगे रोग सभी।।

#संजय जैन 

परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों  पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से  कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें  सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की  शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।

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