माँझा

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jyoti

पूरा परिवार इकट्ठा हो पतंग उड़ा रहा थां,पतंग उड़ाते-उड़ाते पत्नी की ओर एक मासूम-सा सवाल आया-रिश्ते भी माँझे की तरह होना चाहिए न…? इतने ही मजबूत…है न…?

‘नहीं प्रिये…!’ जवाब भी मजबूत था। माँझे की तरह नहीं,रेशम की तरह…l

‘क्यों…? रेशम तो कितना नाजुक होता है न ?’

‘हाँ…! मगर रेशम, रेशम को नहीं काटता पर माँझा,माँझे को काट देता है।’

                                                                                                #ज्योति जैन

परिचय: ज्योति जैन की विद्यार्थी जीवन से ही साहित्य में रुचि रही है और अनेक साहित्यिक प्रतियोगिताओं में विजेता हुई हैंl आप एयरविंग की कैडेट व बेटमिन्टन खिलाड़ी रहीं हैंl कई प्रतिष्ठित समाचार पत्र-पत्रिकाओं में १००० से अधिक लेख,कहानी,कविता,लघुकथा व समीक्षाएँ प्रकाशित हो चुकी हैंl गुजराती,पंजाबी में भी आपकी रचनाएँ अनुवादित हुई हैं तो बांग्ला-मराठी में पुस्तकें अनुवादित हैंl आपकी आकाशवाणी में सतत् सक्रियता के साथ ही भारतीय वांग्मयपीठ(कोलकाता)द्वारा `गुरूदेव रविन्द्रनाथ ठाकुर सारस्वत सम्मान` सहित अनेक सम्मान राष्ट्रीय-प्रदेश स्तर पर पाए हैं। पूना कॉलेज में आपकी लघुकथाओं पर शोध-पत्र तथा पूना-मुम्बई में न् सेमिनार में भी आपके शोध-पत्र प्रस्तुत हुए हैं। आप मध्य प्रदेश के इंदौर की कई प्रतिष्ठित संस्थाओं की सदस्या और पदाधिकारी भी हैं। पारम्परिक ‘माँडना’कलाकार सहित वर्तमान में निजी कॉलेज में अतिथि व्याख्याता हैं। जलतरंग व बिजूका (लघुकथा संग्रह),भोर बेला व सेतु तथा अन्य कहानियाँ (कहानी संग्रह),मेरे हिस्से का आकाश व माँ-बेटी (कविता संग्रह),पार्थ……..तुम्हें जीना होगा(उपन्यास) आदि प्रकाशन आपके नाम हैंl

      

 

matruadmin

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One thought on “माँझा

  1. ‘हाँ…! मगर रेशम, रेशम को नहीं काटता पर माँझा,माँझे को काट देता है।’

    अच्छा प्रयोग है

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