#कोमल वाधवानी ‘प्रेरणा’
उज्जैन(म.प्र.)
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वह बड़े तन्मय भाव से हरे – भरे विराट वृक्ष के नीचे खड़ा हो उसे निहार रहा था । उसके क़रीब से गुज़रते हुए मेरे पाँव उसकी इस मुग्ध दृष्टि को देखकर ठिठक गए ।
” पेड़ की हरियाली को निहार रहे हो , कितनी गहन है! कितनी शीतल ! सच में तेज़ धूप के बाद जब ऐसा वृक्ष आता है, तो आगे बढ़ने का मन ही नहीं होता । हमारा रोम-रोम उसके प्रति कृतज्ञ हो उठाता है । ” एक अनजान व्यक्ति से नि:संकोच यूँ कहते हुए मैं तब हड़बड़ा गया , जब उसने मुझे गुस्से में घूरकर देखा ।
अचकचाकर मैं जैसे ही आगे बढ़ा , मेरी नज़र उसके पीठ पीछे बँधे हाथों पर पड़ी , उसमें चमकती कुल्हाड़ी थी ।
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