किताबें!
किताबें ज्ञान का भंडार होती हैं
किताबों में छीपे रहते हैं
अनगिनत अल्फाज,
किताबें अज्ञानता को दूर करती हैं
जरा इनसे मित्रता तो करो,
किताबें बहुत कुछ देती हैं।
किताबें!
किताबें समुद्र जैसी होती हैं
इनमें समाहित होते हैं
बहुमूल्य रत्न
किताबें दूर कर देती हैं
समस्त समस्याओं को
जरा इनसे मित्रता तो करो
किताबें बहुत कुछ देती हैं
किताबें!
किताबें फूलों की बगिया हैं
इस बगिया का प्रत्येक फूल
गुणकारी होता है
कभी न देंगी दगा
साथ निभाएँगी सदा
जरा इनसे मित्रता तो करो
किताबें बहुत कुछ देती हैं।
किताबें!
किताबें बेजुबान होती हैं
मगर शब्दों में जुबां होती है
ये कह जाती हैं अकल्पनीय बातें
जरा इनसे मित्रता तो करो
किताबें बहुत कुछ देती हैं
किताबें!
किताबें माँ होती हैं।
जिस तरह माँ को शब्दों द्वारा वर्णित करना असंभव है,
किताबें संतान के लिए समर्पित होकर ज्ञान का वरदान देती है, जरा इनसे मित्रता तो करो,
किताबें बहुत कुछ देती हैं।
#कुमार संदीप
परिचय:–
नाम-संदीप कुमार मिश्रा
साहित्यक नाम-कुमार संदीप
लेखन विधा-कविता
शहर-मुजफ्फरपुर(बिहार)
गाँव-सिमरा
साहित्यक उपलब्धि:-प्रसिद्ध समाचारपत्र-मेरठ से प्रकाशित विजय दर्पण में मेरी रचना को स्थान मिल चुका है
प्रसिद्ध समाचारपत्र हरियाणा प्रदीप में मेरी रचना को स्थान मिल चुका है।
राज्स्थान से प्रकाशित प्रसिद्ध समाचारपत्र युगपक्ष में प्रकाशित हुआ है।
गाजियाबाद से प्रकाशित दैनिक वर्तमान अंकुर में भी रचना प्रकाशित हुई है,एवं अन्य समाचारपत्र में मेरी रचना आई है।