आप कहते रहिए मैं सुनता रहूंगा
आप उधेड़ते रहिए मैं बुनता रहूंगा
आप तंज़ किजिए मैं दिल पर नहीं लूंगा
आप बुरा भला कहिए मैं मुस्कुरा दूंगा
आप दावा कीजिए बेहतरीन लिखने का
मैं बड़े अदब से उसे पढ़ूँगा
आप बहस का मौक़ा तलाश किजिए
मैं कभी आपसे नहीं उलझूँगा
बस ये ख़याल रहे
मुझे संजोने की आ़दत है और
लिखना मेरे लिए इ़बादत है
ग़ुस्सा, खुशी, दुःख, ये सब कैफ़िय्यतें
मैं लिख कर ज़ाहिर करता हूं
आप लाख मेरी बद-ख़्वाही करते रहें
एक दिन मैं आपके सब सवालों का जवाब दूंगा
आपको अपनी कहानी का किरदार बना दूंगा
और मेरी कहानियां
आपके हर तंज़ का जवाब देंगी
आप उस वक्त कराह रहे होंगे
और मेरी कहानियां हौले से मुस्कुरा देंगी
उस दिन बड़े इत़मिनान से मैं आपसे गले मिलूंगा
मेरे मुतअ़ल्लिक़ बुरा-भला जो भी कहा
उसका भी कोई ज़िक्र नहीं करूंगा
और हाँ, ये भी सुनते जाइए
एकलव्य मैं हूं और द्रोण भी मैं ख़ुद ही हूं
न कोई ऐसा है जो मुझे सिखा सके
न मैं ऐसा हूं कि किसी को सिखा सकूँ
मैं आपके ओछेपन पर ख़ामोश हूं
तो ये भी मेरा ख़ुलूस़ है
चाटना मेरी फ़ित़रत नहीं
मगर मैं सम्मान करता हूँ रिश्तों का
और दोग़लापन आपको
ख़ास से आ़म की सूची में ले आता है
दोस्ती चंद दिनों में ही दम तोड़ देती है अगर
तो ये आप जैसे लोगों कि देन है।
#वरुण वीर
परिचय-
नाम: वरुण कुमार
क़लमी नाम: वरुण वीर
जन्म: उधमपुर (जम्मू-कश्मीर)
ता’लीम: इब्तिदाई ता’लीम, कटरा (ज़िला रियसी, जम्मू-कश्मीर), बा’द की पढ़ाई उधमपुर में। स़िर्फ़ इतना पढ़ा हूँ कि पढ़ा-लिखा कहला सकूँ।
मौजूदा रिहाइश: उधमपुर
पेशा: कार-ओ-बार, जो फ़िल्हाल इतना बड़ा नहीँ कि मेरी पहचान बन सके।
धन-दौलत या कोई बड़ी जायदाद नहीँ। मेरी सबसे बड़ी दौलत है मेरे ढेर सारे ख़्वाब जिन्हें मुकम्मल करना ही ज़िन्दगी का मक़्सद है। पुर-उम्मीद हूँ कि अगर साँसों ने दग़ा नहीँ दी तो एक दिन ख़्वाब पूरे हो ही जाएंगे।
इब्तिदा में लिखना मेरी चुप्पी को तोड़ने का ज़रिया बना। फिर मेरी ख़ुशी, मेरा सुकून बन गया। फिर मेरी आ़दत बना और अब लिखना मेरा सहारा बन गया है। लिखने को लेकर मैं इस क़दर दिवाना हूं कि कुछ भी लिख देता हूँ। शादी से मातम तक, जन्नत से जहन्नुम तक, बच्चे की किलकारी से बुढ़ापे के खड़ूसपन तक, प्रेम की ख़ूबस़ूरत सुब्ह से लेकर विरहा की काली रात तक। सुब्ह से शाम तक बस लिखता हूँ जो विषय मिल जाए जो दिल में आए वही लिखता हूं।
ख़्वाब और उम्मीदें: यही कि एक दिन लिखारी बनूँगा। लिखारियों की दुनिया में मेरा नाम भी शुमार होगा। यह ग़ुरूर नहीँ बस एक विश्वास है ख़ुद पर और अपने क़लम पर और सब से बढ़कर अपने माँ-बाप के आशीर्वाद पर।
प्रेम तो सबसे करता हूँ मगर जो प्रेम मुझे अपनी साँसों से ज़ियादा अज़ीज़ है वो है अपने परिवार और अपने लिखने के हुनर से प्रेम।
मुझे पढ़ें, और मेरी रचनाओं के ह़वाले से मेरे बारे में अपनी राए क़ायम करें। जैसा आपको लगूँ , मुझे वैसा ही कहिये। बुरा या अच्छा या कुछ भी, आप कहने के लिये आज़ाद हैं।